राँची दर्पण डेस्क। झारखंड प्रदेश की मनोरम राजधानी राँची की आँचल में टैगोर हिल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और शांति को लेकर देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां की सुंदरता और मनमोहक दृश्य पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
यह टैगोर हिल समुद्र तल से 300 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित है। मोराबादी ईलाके का यह बेहद ही सुंदर इलाका है। टैगोर हिल से न सिर्फ पूरा रांची शहर, बल्कि यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का भी खूबसूरत नजारा दिखता है।
टैगोर हिल का इतिहास रबींद्रनाथ टैगोर और उनके परिवार से जुड़ा है। इसलिए इस चोटी को टैगोर हिल का नाम दिया गया। ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर 1884 में अपनी पत्नी द्वारा आत्महत्या करने के बाद वैरागी हो गए थे और मोरहाबादी आकर उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया और यहीं रहने लगे।
रबींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिंद्रनाथ टैगोर ने साल 1908 में इस पहाड़ी का भ्रमण किया था, यहां की खूबसूरती को देखकर वह मोहित हो गए थे। इसके बाद उन्होंने इस पहाड़ी पर अपना शिविर स्थापित किया।
कहा जाता है कि रबींद्रनाथ टैगोर ने भी यहां पर बैठकर अपनी कई किताबें लिखी थीं। 300 फीट ऊंचे टैगोर हिल के परिसर में हजारों पेड़ लगे मौजूद हैं। इन पेड़ों में सबसे ज्यादा लगभग 2000 नीम के पेड़ लगे हैं।
इस पहाड़ की चोटी पर निराकार मानवधर्मी ब्रह्म मंदिर है। यहीं पर ज्योतिंद्रनाथ टैगोर की मुलाकात स्वामी विशुद्धानंद से हुई, जिन्होंने बाद में टैगोर परिवार द्वारा दान में दी गई जमीन पर रामकृष्ण मिशन आश्रम की नींव डाली थी।
प्रकृति की गोद में मनमोहक दृश्य समेटे इस पहाड़ी की बुनियाद पर रामकृष्ण मिशन आश्रम भी स्थित है, जिसका पयर्टक दौरा कर सकते हैं।
टैगोर हिल पर ब्रह्म मंदिर व शांति धाम रवींद्रनाथ टैगोर के अग्रज ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर ने बनवाया था। यहीं पर उन्होंने 1924 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा मराठी में लिखित मराठी गीता रहस्य नामक पुस्तक का बांग्ला में अनुवाद भी किया था। चार मार्च 1925 को उन्होंने यहीं पर अंतिम सांस ली थी।
ज्योतिंद्रनाथ ने इस पहाड़ी को स्थानीय जमींदार हरिहर सिंह से 1908 में खरीदा था। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के भाई ज्योतिरींद्र नाथ टैगोर की यादगार विरासत टैगोर हिल रांची की एक धरोहर बन गया है।
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