राँची दर्पण (एहसान राजा)। वन एवं पर्यावरण विभाग की लापरवाही और लूट का जीवंत उदाहरण है देश का दूसरा गिद्ध संरक्षण सह प्रजनन केंद्र मुटा।
इसे बने सात साल हो गए, परंतु वहां अभी तक गिद्ध का एक भी जोड़ा नहीं लाया जा सका है। लाखों रुपए खर्च कर इस केंद्र का निर्माण कार्य 2013 में ही पूरा हो चुका है।
इन सात साल में यहां पदस्थापित अधिकारी व कर्मचारियों में सिर्फ वेतन मद में कई करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। गिद्ध संरक्षण केंद्र को वैज्ञानिक एवं अत्याधुनिक ढंग से बनाया गया है।
इसकी एक खास वजह यह है कि गिद्ध एक साल में सिर्फ एक बार ही दो अंडा देती है। अगर वह खराब हो गया तो पुनः साल भर इंतजार करना होगा। इसी अंडे को बचाने के लिए केंद्र में प्राकृतिक के साथ वैज्ञानिक तरीके का भी इंतजाम किया गया है।
यहां पर हजारीबाग गिद्ध संरक्षण केंद्र एवं हरियाणा के पिंजौर गिद्ध प्रजनन केंद्र से गिद्ध के जोड़ों को लाना है। जो आज तक पूरा नहीं हो सका। विभाग द्वारा कागजी प्रक्रिया लंबे समय से चली आ रही है।
इस केंद्र में अस्पताल, नर्सरी, लैब ,क्रिटिकल केयर रूम व इनक्यूबेटर रूम आदि बनाए गए हैं, जो अब जर्जर स्थिति में है। अब पुनः सब कुछ नया बनाया जा रहा है।
गिद्ध को लुप्त प्राय प्रजाति के अंतर्गत रखा गया है। इसलिए इसे सीड्यूल वन क्षेत्र की श्रेणी में रखा गया है।
ज्ञात हो कि मुटा ओरमांझी प्रखंड अंतर्गत पंचायत कूटे में अवस्थित है। इस केंद्र को मगर प्रजनन केंद्र के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस केंद्र में ना तो मगरमच्छ है ,और ना ही गिद्ध है।
ओरमांझी से लेकर गिद्ध प्रजनन केंद्र मुटा तक जगह जगह पर बोर्ड लगाया गया है। जिसके चलते आने वाले पर्यटकों को काफी परेशानी हो रही है।
पर्यटक यहां पर आते हैं घूमने के लिए, लेकिन वे न ही मगरमच्छ देख पाते है और न ही गिद्ध देख पाते है। यहां पर घूमने आने वाले लोगों को सिर्फ निराशा होकर वापस लौट जाना पड़ता है।