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      चंपाई सोरेन के झामुमो छोड़ने से भाजपा को कितना फायदा और नुकसान होगा

      रांची दर्पण डेस्क/मुकेश भारतीय। झारखंड प्रदेश की राजनीति में कोल्हान टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत झारखंड प्रदेश में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से की थी। अपनी प्रारंभिक राजनीति के दौरान उन्होंने जमीनी स्तर पर काम करते हुए आदिवासी और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उनका समर्पण और नेतृत्व कौशल उन्हें पार्टी के एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरने में मददगार रहा।

      झामुमो के साथ अपने राजनीतिक सफर में चंपाई सोरेन ने कई प्रमुख पदों पर कार्य किया। वे झारखंड विधानसभा में सक्रिय रूप से भाग लेकर अपने क्षेत्र के विकास के लिए प्रयासरत रहे हैं। उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने न सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए योजनाओं को आगे बढ़ाया, बल्कि राज्य स्तर पर भी हेमंत सोरेन सरकार के विभिन्न महत्वपूर्ण निर्णयों को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाई।

      बहरहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन का पार्टी से अलग होना राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना है। इसके पीछे कई कारण हैं, जो धीरे-धीरे सार्वजनिक हो रहे हैं। प्रमुख कारणों में से एक चंपाई सोरेन और पार्टी नेतृत्व के बीच लंबे समय से चले आ रहे मतभेद हैं। चंपाई सोरेन ने कई बार पार्टी नेतृत्व पर अनदेखी और उनके विचारों को महत्व न देने का आरोप लगाया है। लेकिन चंपाई सोरेन की निजी स्वार्थ भी कम बड़ा कारण नहीं है।

      राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में चंपाई सोरेन के अलगाव के परिणाम दीर्घकालिक हो सकते हैं। चंपाई सोरेन का झामुमो छोड़ना न केवल पार्टी के लिए बल्कि राज्य की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा या अन्य दल इस स्थिति को कैसे भुनाते हैं या उसकी कीमत चुकाते हैं। क्योंकि चंपाई सोरेन की नीतिगत अनुभव और उनके सामुदायिक समर्थन को देखते हुए निश्चित रूप से उनकी राजनीतिक यात्रा का प्रभाव रहेगा।

      यह भी तय है कि चंपाई सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से अलगाव का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। भारतीय राजनीति में प्रत्येक नेता की विशेष भूमिका होती है और चंपाई सोरेन का झामुमो से अलग होना संभवत: भाजपा के लिए दोनों दिशाओं में परिणाम ला सकता है – सकारात्मक और नकारात्मक।

      सबसे पहले सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो चंपाई सोरेन का जनाधार भाजपा के लिए अवसर हो सकता है। जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को देखते हुए चंपाई सोरेन का समर्थन भाजपा को उन इलाकों में वोट बैंक मजबूत करने में मदद कर सकता है जहां उनका प्रभाव है। इस प्रकार चंपाई सोरेन के झामुमो से अलगाव के बाद उनका जनाधार भाजपा के संभावित लाभ के तौर पर उभर सकता है। साथ ही विभिन्न राजनीतिक समीकरणों का पुनर्गठन भाजपा की चुनावी रणनीति को और धार दे सकता है और नए गठबंधनों की संभावना भी बढ़ा सकता है।

      हालांकि, इस घटनाक्रम के कुछ संभावित नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। सबसे पहले चंपाई सोरेन का झामुमो से अलग होना भाजपा के लिए जनता का अनुपालन खोने की स्थिति पैदा कर सकता है। विशेषकर अगर यह कदम जनता में लोकप्रिय नहीं है। इसके अलावा चंपाई सोरेन के भाजपा के साथ जुड़ने से भाजपा की आंतरिक राजनीति में दरारें आ सकती हैं, जो पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं। इन गठबंधन में आई संभावित दरारों के चलते आगामी चुनावों में चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं और पार्टी की स्थिरता पर सवाल उठ सकते हैं।

      भाजपा को सोच-समझकर यह तय करना होगा कि चंपाई सोरेन के झामुमो से अलग होने के बाद उनके साथ गठबंधन करने का कदम कितना सही और लाभप्रद होगा। जबकि कुछ क्षेत्रों में जनाधार बढ़ने की संभावना है, वहीं आंतरिक मतभेद और जनविरोध का खतरा भी है।

      झारखंड की राजनीति में चंपाई सोरेन के झामुमो से अलग होने के तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणामों का विश्लेषण करने के लिए कई पहलुओं को ध्यान में रखना जरूरी है। सबसे पहले, विभिन्न राजनीतिक दलों की रणनीतियों में संभावित बदलाव को समझना अहम है। चंपाई सोरेन का झामुमो से अलग होना, भाजपा, कांग्रेस और झामुमो सहित अन्य दलों की रणनीतियों को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है।

      भाजपा, जो वर्तमान में एक प्रमुख विपक्षी दल है। इस घटनाक्रम को अपने लिए एक लाभदायक अवसर के रूप में देख रही है। हालांकि, इसे दीर्घकालिक लाभ के संदर्भ में निश्चित नहीं कहा जा सकता। चंपाई सोरेन के अलग होने से झामुमो के भीतर अस्थिरता का संकेत मिलता है। जिसे भाजपा अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश करेगी। फिर भी भाजपा को इस अस्थिरता का फायदा उठाने के साथ-साथ इससे उत्पन्न चुनौतियों का भी सामना करना होगा।

      दूसरी ओर कांग्रेस भी इस घटनाक्रम को अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मान सकती है। हालांकि कांग्रेस को झामुमो के पूर्व गठबंधन सहयोगी के रूप में सावधान रहना होगा, ताकि भविष्य में सहयोग की संभावनाएं खत्म न हों। इस परिस्थिति में कांग्रेस की रणनीति संतुलित होनी चाहिए, जो झारखंड की जनता को यह संकेत दे कि वे एक स्थायी और विश्वसनीय विकल्प हो सकते हैं।

      झारखंड की जनता की उम्मीदें और आगामी विधानसभा चुनावों पर इस घटनाक्रम का प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। राज्य की वृहद जनसंख्या इस राजनीतिक परिवर्तन को किस प्रकार देखती है, यह आगामी चुनावों में निर्णायक हो सकता है। जनता की अपेक्षाएँ और सोचने का तरीका ही विभिन्न दलों की रणनीतियों को आकार देगा।

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