रांची दर्पण डेस्क। करम परब यानी प्राकृतिक लोक परब हमारी संस्कृति की महत्वपूर्ण और अनमोल धरोहर है। यह प्राकृतिक के साथ साथ सामाजिक एकता, सहभागिता, सामूहिकता और भाईचारे का भी परिचायक है। करम परब प्रकृति को संरक्षित और समृद्ध करने के साथ साथ जीवन को गति देने वाला त्योहार है। प्रकृति के प्रति लोगों का यही प्रेम, सम्मान और समर्पण यहां चलने को नृत्य और बोलने को संगीत बना देता है।
बहनें अपने भाई के लिए करम एकादश करती है ताकि भाई बहन का प्रेम बना रहे। करम एकादश के दिन बहनें भाई का लंबी उम्र का कामना करती है। भादो शुरू होते ही करम परब का तैयारियां शुरू कर दिया जाता है। खेतों में काम समाप्त होने के बाद बहनें उत्साहित होकर व्रत करती हैं कि अब अनाज की कोई कमी नहीं होगी।
भादो मास शुक्ल पक्ष के एकादशी के नौ दिन पूर्व स्थानीय नदी, नाला, तालाब, जोरिया आदि जलाशय से नया बांस की डाली में साफ बालू उठाकर उसमें धान , चना, जौ, कुरथी, मकई, मूंग, उरद सहित नौ प्रकार के कृषि उत्पादित बीजों को बोकर जावा उठाती है, जिसे “बाली उठा” कहा जाता है।
जावा उठाकर घर के अंदर साफ व स्वच्छ जगह पर अनुष्ठित करने वाली बालाओं को जावा की स्वच्छता के लिए कठोर नियम का पालन करना पड़ता है। स्वयं के खान-पान, रहन-सहन पर विशेष ध्यान रखती है, जावा डाली पर बोए गए बीजों को अंकुरित करने के लिए प्रकृति की शुद्ध वातावरण के साथ आवश्यकता के अनुरूप धूप दिखाना, हल्दी पानी पटवाना आदि इन युवतियों के जिम्मे होती है। बाद में जब अंकुरित होता है जिसे जावा कहते हैं । जावा के अंकुरण को सृजन का प्रतीक माना जाता है।
भादो एकादश के दिन गांव के पाहन करम के प्रतीक करम डाली को अखरा के मध्य लगाता है। वहीं करमइतियां भाई बहन अखरा को सजाते हैं। युवतियां भादो दशमी को संजोत कर दूसरे दिन एकादशी को निर्जला उपवास रहकर करम डाली के समक्ष जावा की आराधना करते हैं। इसके बाद रात भर डाली को जगाया जाता है। दूसरे दिन डाली जावा का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के पश्चात् पारना कर अन्न ग्रहण किया जाता है। करम परब का रस्म विशेष वैज्ञानिक महत्व है-
बालू / मिट्टी उठाने का रस्म: मानव देह जिन पांच तत्वों से बना होता है उसमें मिट्टी बहुत अहम होती है और जीवन की शुरुआत करने के लिए मिट्टी की ही पूजा सर्वप्रथम होती है। करम परब में अविवाहित युवतियां अपने आस पास के नदी नाले तालाब से स्नान और पूजा करके बालू / मिट्टी लेने की अनुमति लेती है और अपने बांस की नया टोकरी में नदी की पावन मिट्टी / बालू लेकर घर वापस आती है। जहां 9 प्रकार के कृषि उत्पादक बीज बोती है। जिसे अंकुरित होने होने जावा बोला जाता है, जावा अंकुरण प्रक्रिया को “सृजन का प्रतीक” बोला जाता है तथा मिट्टी में बीज बोने की प्रक्रिया को बुजुर्ग महिलाएं कुंवारी युवतियों को गर्भाधारण की प्रक्रिया का शिक्षा देती है।
लोटे में नदी से जल लाने की प्रक्रिया: जीवन का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व जल होता है, युवतियां जीवनदायिनी नदी से पूजा कर पानी ले आने का विनती करती है। लोटे में नदी का जल को सिर पर रखकर समूह में नाचती हुई घर आती है । जब रंग बिरंगे कपड़े और आभूषणों से सजी हुई युवतियां अपने सिर पर पानी से भरा कलश लेकर चलती है आगे आगे मादर थाप देते नाचते गाते युवा युवतियों का हौंसला बढ़ाते हैं तो यह घटना बहुत मनमोहक होती है। लोटा में पानी लाने का रस्म जीवन में पानी का महत्व को दर्शाता है।
आग तत्व के उपयोग जावा जगाने की बारात: अपनी नदी का बालू/ मिट्टी में बीजारोपण के बाद नव युवतियां हल्दी पानी से सींचती है। अपने बोए गए बीज में जीवन को सीमित रखने के लिए तीसरी महत्वपूर्ण अव्यय अग्नि की आवश्यकता होती है। इसलिए दलिया के पास दिया जलाकर युवतियां पूजा करती हैं। इस दौरान बुजुर्ग महिलाएं युवतियों को कोख में पल रहे गर्भ के लिए ऊर्जा और पोषण की आवश्यकता को दर्शाती है।
करम नाच वायु और आकाशीय तत्व द्वारा सम्मिलित करने का रस्म: जीवन में वायु का महत्व विशेष है, इसके बिना जीवन संभव नहीं है, रेत में बीज को लेकर चारों और करम नाच करते हैं, हवा के निशान दिए जाते हैं।
इस तरह 9 दिन तक लगातार जावा जगाने की प्रक्रिया की जाती है, जो आगे युवतियों को भी अपने जीवन में नए जीव का जन्म देना होगा और उनकी देखभाल और पालन पोषण करना होगा बड़ा करना होगा, इसलिए उन्हें संस्कृति रूप में प्रशिक्षण दिया जाता है।
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