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      दुधि नाला रामगढ़ में मिले अंतिम हिमयुग के प्रमाण, डायनासोर से पहले के जीवाश्म

      रांची दर्पण डेस्क / शोधार्थी- देव कुमार। छोटानागपुर का पठार, जो हरे-भरे जंगलों और खनिज संसाधनों से भरा पूरा है, वहीं इसके गर्भ में छुपा है पृथ्वी पर जीवन के सृजन का रहस्य। लाखों वर्षों के निरन्तर भौगोलिक और भूगर्भीय परिवर्तन के फलस्वरूप छोटानागपुर के पठार में अंतिम हिमयुग के अवशेषों एवं जीवाश्मों का मिलना झारखण्ड के प्रागैतिहासिक इतिहास में निरंतर अन्वेषण और शोध के महत्व को उजागर करता है।

      रामगढ़ जिला के माण्डू प्रखंड  में एक ऐसा ही अनूठा स्थल दुधि नाला भूवैज्ञानिक संरचनाओं का खजाना है जो प्री कैम्ब्रियन काल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में आई विशाल हिमयुग घटना को समझने में मदद करता है। यहाँ भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के भू-वैज्ञानिक भी शोध कार्य के लिये आते-जाते हैं।

      यह लगभग 300 मिलियन वर्ष पहले की बात है, जब भारत का सबसे पूर्वी छोर ऑस्ट्रेलिया में वर्तमान पर्थ के करीब बसा हुआ था और पूर्वी घाट पर्वत श्रृंखला अंटार्कटिका के साथ सीमा साझा करती थी। तत्कालीन भारत गोंडवानालैंड का हिस्सा था जो दक्षिणी गोलार्ध  को घेरने वाला एक विशाल भूभाग था।

      200 मिलियन वर्ष पहले आस्ट्रेलिया एवं अंटार्कटिका से जुड़ा था छोटानागपुर का यह राढ़ क्षेत्रः राढ़ क्षेत्र विश्व की सबसे प्राचीनतम क्षेत्र है। चर्चित लेखक दीपक सवाल ने प्रभात खबर के मांय-माटी अंक में “विश्व का सबसे प्राचीनतम क्षेत्र है ‘राढ़’ यानि अबुआ झारखंड” शीर्षक द्वारा आलेख के माध्यम से इसकी बखूबी चर्चा की है।

      उन्होंने लिखा  है कि राढ़ सभ्यता सिद्धान्त का प्रतिपादन वर्ष 1981 में महान दार्शनिक एवं मैक्रो  हिस्टोरियन प्रभात रंजन सरकार ने किया था। राढ़ क्षेत्र को दो भागों में विभक्त किया गया है- पूर्वी राढ़ एवं पश्चिमी राढ़। दुधि नाला का क्षेत्र इसी पश्चिमी राढ़ क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

      प्रभात रंजन सरकार द्वारा संग्रह किया गया मध्य पाषाण काल ​​से लेकर उत्तर पाषाण काल ​​तक के प्रागैतिहासिक पत्थर आज भी बोकारो जिला के आनंद मार्ग कार्यालय एवं कलकता संग्रहालय में संरक्षित हैं। लगभग 200 मिलियन वर्षों तक, भारत अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलिया से निकटता से जुड़ा रहा, जिससे डायनासोर सहित जानवर प्राचीन भूमि पुलों के माध्यम से इन भूभागों के बीच स्वतंत्र रूप से घूमते थे।

      पद्मश्री बुलु इमाम ने दामोदर नदी घाटी में प्राचीन और जीवित सभ्यता की खोज की पहली रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसमें उन्होंने लिखा है कि दुधि नाला के निकट उनके द्वारा मनुष्य की सबसे प्रारम्भिक कलाकृतियों को देखा गया। इस्को नाला एवं दुधि नाला को विभाजित करने वाली पहाडियों के निकट दुर्लभ क्षेत्र चपरी में समृद्ध कला का वर्णन है।

      चपरी एवं जोराकाठ के कुडमियों की कला इतनी समृद्ध है, जो शायद अब तक खोजी गई पशु संबंधित कला में सबसे लोकप्रिय है। इसके आगे,सहेदा गाँव के गंझू परिवार के घर की दीवारों पर असाधारण पशु और पक्षी चित्रकारी का उल्लेख किया गया है।

      उन्होंने लिखा है कि जामू गैलरी में यहाँ की महिलाओं ने छह फीट गुणा बारह फीट के बोर्ड पर शिकार का दृश्य 1992 में चित्रित किया जो आज ऑस्ट्रेलिया की सबसे प्रतिष्ठित न्यू साउथ वेल्स आर्ट गैलरी, सिडनी में है। साथ ही, यहाँ की भित्ति चित्र मोर अब क्वींसलैंड आर्ट गैलरी, ब्रिस्बेन में है।

      दुधि नाला की अनूठी भूगर्भीय संरचनाएँ इस क्षेत्र के हिमयुगीन अतीत और पृथ्वी के इतिहास में इसके स्थान के बारे में बहुमूल्य संकेत प्रदान करती हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, झारखण्ड में इससे पुराने जीवाश्म होने के संकेत कहीं और नहीं पाये गये हैं।

      दुधि नाला तालचिर, करहरबारी व बराकर जैसी तीन प्रकार की भू वैज्ञानिक संरचनाओं का संगम है। बराकर संरचना में मुख्य रूप से क्वार्टजाइट, फेल्सपार और माइका जैसे खनिज पाए जाते हैं। तालचिर संरचना में मुख्य रूप से टिलाइट्स, मुखाग्र कंकड़ और ड्रॉपस्टोन खनिज पाए जाते हैं।

      करहरबारी संरचना में मुख्य रूप से शिस्ट और मार्बल जैसे खनिज पाए जाते हैं। यह तीनों संरचना प्री कैम्ब्रियन काल के दौरान बनी थी और उपरोक्त तीनों संरचनाओं में हिमयुगीन गतिविधियों के प्रमाण मिलते हैं।

      प्री कैम्ब्रियन काल भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एक महत्वपूर्ण समय था, जिसमें 99% से अधिक भारतीय कोयला  इस अंतराल के दौरान बने थे। प्री कैम्ब्रियन  काल में आधुनिक महाद्वीपों का दो बड़े भूभागों में संयोजन देखा गया, जिसमें टेथिस भी शामिल है।

      पूर्वी भारत में फैला गोंडवाना बेसिन कोयला सीमा और निपटान संबंधित तलछट का अध्ययन करने के लिए एक प्रमुख स्थान है। दामोदर घाटी बेसिन बेल्ट निचले गोंडवाना चट्टानों के लिए एक प्रकार का खंड प्रदान करता है जो विभिन्न तलछटी संरचनाओं और पहलुओं को प्रदर्शित करता है। यहाँ के तलछट पीछे हटने, आगे बढ़ने तथा हिमनदों के जमा होने के संकेत देते हैं।

      कहीं कागजों में ही सिमट कर न रह जाये दुधि नाला की महताः भारत में वर्तमान समय में कुल 34 राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक विरासत हैं। झारखंड राज्य में मुख्यतः दो भू-वैज्ञानिक  साइट हैं। पहला जीवाश्म पार्क,साहेबगंज जिसे राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक विरासत का दर्जा प्राप्त हो चुका है तो दूसरा रामगढ़ जिला का दुधि नाला जो अब तक राष्ट्रीय धरोहर की सूचि से अछूता है। हालाँकि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा दुधि नाला  के संरक्षण हेतु प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

      स्वतंत्र शोधकर्त्ता डॉ कृष्णा गोप ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि बचपन से हमने दुधि नाला को देखा है। कल-कारखानों के अवशिष्ट बहने के कारण यह प्रदूषित होती जा रही है। कुछ वर्ष पहले तार काँटों से इसके संरक्षण हेतु घेराव किये गये थे जो अब नष्ट हो चुके हैं। यहाँ विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग एवं भारतीय खनन संस्थान,धनबाद जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के अलावा विदेशों से भी शोधार्थी आते हैं।

      इस प्रागैतिहासिक धरोहर को जियो-टूरिज्म के रूप में जल्द-से-जल्द विकसित किया जाना चाहिये। दुधिया नाला का संरक्षण न केवल शोधकर्ताओं को भारत के हिमयुगीन अतीत को समझने में मदद करेगा बल्कि पारिस्थितिकी पर्यटन एवं सामुदायिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ भावी पीढ़ियों के लिए इस अद्वितीय भू-विरासत स्थल का दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित करेगा।

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