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    Friday, December 26, 2025
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      कांके CO ने DCLR कोर्ट के आदेश को दिखा रहा ठेंगा, 25 डिसमिल की प्लॉट को बता रहा 37 डिसमिल!

      रांची दर्पण डेस्क | रांची, 20 दिसंबर 2025 | झारखंड की राजधानी रांची के कांके क्षेत्र में एक ऐसा जमीन विवाद उफान पर आ गया है, जो न केवल कानूनी सिद्धांतों को चुनौती दे रहा है, बल्कि राजस्व प्रशासन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर रहा है।

      कांके के सर्कल ऑफिसर (सीओ) अमित भगत ने नेवरी मौजा में एक फर्जीवाड़े से जुड़ी दोहरी जमाबंदी को लेकर डीसीएलआर (डिप्टी कलेक्टर लैंड रिकॉर्ड्स) कोर्ट के स्पष्ट आदेश की अवहेलना करने पर उतारु है। इतना ही नहीं वे दुष्प्रचार भी फैला रहे हैं कि ऐसा कोई आदेश अस्तित्व में ही नहीं है। लेकिन दस्तावेज और रिकॉर्ड कुछ और ही बयान कर रहे हैं। एक ऐसी कहानी जहां 25 डिसमिल की सीमित जमीन पर 37 डिसमिल का रसीद कट रहा है, जो भौतिक रूप से असंभव और कानूनी रूप से अवैध है।

      मामला नेवरी मौजा के प्लॉट संख्या-1335 से जुड़ा है, जहां कुल रकबा मात्र 25 डिसमिल है। रांची डीसीएलआर कोर्ट ने 2 दिसंबर 2025 को एक स्पष्ट और बाध्यकारी आदेश जारी किया था। कोर्ट ने पाया कि वर्तमान उतरवादी (विरोधी पक्ष) के नाम पर वर्ष 2020 के एक फर्जी ‘केवाला’ (राजस्व दस्तावेज) के आधार पर दाखिल खारिजवाद संख्या-4020 R27/2021-22 के जरिए अतिरिक्त 12 डिसमिल भूमि की जमाबंदी कायम कर ली गई है। इससे खतियानी रकबा (आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज क्षेत्रफल) से अधिक जमीन की एंट्री हो गई, जो राजस्व कानूनों का घोर उल्लंघन है।

      रांची डीसीएलआर कोर्ट ने 1 जनवरी 2022 को पारित मूल आदेश को तत्काल रद्द करने का निर्देश दिया है। उसके बाद अंचलाधिकारी (सीओ) को समर्पित दस्तावेजों, राजस्व कागजातों और स्थल पर दखल-कब्जा (कब्जे की स्थिति) की विस्तृत जांच करने का हुक्म दिया है। उसके बाद नए सिरे से विधिसम्मत (कानूनी रूप से वैध) आदेश पारित करने की बाध्यता। आदेश के साथ ही संबंधित दस्तावेज प्रेषित किए गए, जिससे तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा की गई।

      यह आदेश झारखंड भूमि सुधार अधिनियम, 2000 की धारा 46(ए) और राजस्व संहिता के प्रावधानों के अनुरूप है, जो फर्जी दस्तावेजों पर आधारित जमाबंदी को अमान्य घोषित करने का प्रावधान करता है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि ऐसी अनियमितताएं न केवल पक्षकारों को प्रभावित करती हैं, बल्कि सार्वजनिक राजस्व को नुकसान पहुंचाती हैं।

      हैरानी की बात यह है कि कांके सीओ अमित भगत ने इस आदेश को नजरअंदाज कर दिया है। एक वरीय पत्रकार से की गई बातचीत में उन्होंने साफ कहा कि डीसीएलआर ने ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया है। दोनों पक्षों की जमीन वहां उपलब्ध है। एक-दो डिसमिल का अंतर दिख रहा है। यह दावा न केवल कोर्ट के दस्तावेजों से मेल नहीं खाता, बल्कि एक खतरनाक दुष्प्रचार का रूप ले चुका है। रांची दर्पण के पास इस बातचीत का ऑडियो क्लीप सुरक्षित है, जो सीओ के इस रुख को प्रमाणित करता है।

      वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट है। प्लॉट की कुल खतियानी रकबा 25 डिसमिल है, जिसकी रजिस्ट्री वर्ष 2010 में प्रथम पक्ष (मूल मालिक) के नाम पर हो चुकी थी। उसी वर्ष से जमाबंदी कायम है और वर्ष 2025-26 तक लगान (भूमि कर) देय है। लेकिन वर्ष 2022 में विरोधी पक्ष ने एक फर्जी केवाला का सहारा लेकर अतिरिक्त 12 डिसमिल की जमाबंदी करवा ली। नतीजा? आज की तारीख में 25 डिसमिल वाली प्लॉट पर 37 डिसमिल का रसीद कट रहा है! विरोधी पक्ष ने कभी इस जमीन पर कब्जा नहीं किया। फिर भी वे लगातार रसीद कटवा रहे हैं, जो राजस्व चोरी और फर्जीवाड़े का स्पष्ट प्रमाण है।

      यह स्थिति भौतिक रूप से असंभव है। क्योंकि जमीन का आकार न तो बढ़ सकता है, न ही कागजों से ही वास्तविकता बदल सकती है। कानूनी नजरिए से यह झारखंड टेनेंसी एक्ट की धारा 20 और 46 के तहत दंडनीय अपराध है, जिसमें जुर्माना और कारावास तक की सजा हो सकती है।

      प्रथम पक्ष ने वर्ष 2010 से पूरी 25 डिसमिल की रजिस्ट्री कराई। सब कुछ सुचारू चल रहा था, जब तक वर्ष 2025 में एक संदिग्ध केवाला सामने नहीं आया। जांच में पाया गया कि यह दस्तावेज नकली था, जो विरोधी पक्ष ने स्थानीय राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से तैयार करवाया और वर्ष-2022 से जमाबंदी करा ली। डीसीएलआर कोर्ट ने इसे फर्जी घोषित करते हुए मूल रिकॉर्ड को बहाल करने का आदेश दिया, लेकिन सीओ भगत की निष्क्रियता ने मामले को लटका दिया है।

      स्थानीय निवासियों का कहना है कि ऐसी अनियमितताएं कांके क्षेत्र में आम हो गई हैं, जहां भूमाफिया और राजस्व अधिकारियों की सांठगांठ से सैकड़ों एकड़ जमीन पर कब्जे हो रहे हैं। कई लोगों ने बता कि हमारी जमीन कागजों में ही बिक रही है। कोर्ट का आदेश होने के बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही तो न्याय का क्या मतलब?

      बहरहाल यह मामला केवल एक प्लॉट तक सीमित नहीं है। यह पूरे राजस्व तंत्र की कमजोरियों को उजागर करता है। यदि सीओ जैसे जिम्मेवार अधिकारी कोर्ट आदेशों की अवहेलना करेंगे तो आम आदमी का विश्वास कैसे बनेगा? हालांकि इसकी शिकायत डीसीएलआर कोर्ट में की लिखित रुप से की गई है, जहां अवमानना का मुकदमा चल सकता है।

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