Shameful reality: आज भी पानी के लिए यूं पहाड़ चढ़-उतर रही हैं महिलाएं

रांची दर्पण डेस्क। झारखंड सरकार (Shameful reality) एक ओर हर घर नल से जल योजना के तहत गांव-गांव पाइपलाइन बिछाकर हर घर तक स्वच्छ जल पहुंचाने के दावे कर रही है। दूसरी ओर मईंयां सम्मान योजना को महिला सशक्तिकरण की क्रांति बताकर प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन खूंटी जिले के अड़की प्रखंड अंतर्गत कोचांग पंचायत के उलीडीह टोले की तस्वीर इन तमाम दावों और योजनाओं पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।

यहां की महिलाएं और बच्चे आज भी 21वीं सदी में बुनियादी सुविधा पानी के लिए पहाड़ों की खड़ी चढ़ाई पार करने को मजबूर हैं। टोले में न तो कोई सरकारी जल योजना पहुंची है, न ही कोई स्थायी जलस्रोत मौजूद है। ग्रामीणों की प्यास बुझाने का एकमात्र सहारा है पहाड़ पर बना महज तीन फीट चौड़ा और तीन फीट गहरा एक छोटा गड्ढा, जिसमें रिस-रिस कर पानी जमा होता है।
हर दिन की शुरुआत महिलाओं और बच्चों की पानी की तलाश से होती है। वे सिर पर भारी बर्तन उठाकर पहाड़ी चढ़ाई चढ़ते हैं और फिर उसी छोटे गड्ढे से पानी भरकर वापस लौटते हैं। कई बार यह सिलसिला दिन में दो-तीन बार दोहराना पड़ता है। तभी उनके घर का चूल्हा जल पाता है और प्यास बुझाई जा सकती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे कई बार पंचायत से लेकर जिला प्रशासन तक गुहार लगा चुके हैं। लेकिन आज तक किसी अधिकारी ने उनकी सुध नहीं ली। सरकारी गाड़ियां आती हैं। फोटो खींचती हैं और लौट जाती हैं। लेकिन हमारे टोले तक पानी आज तक नहीं आया,” एक ग्रामीण महिला ने बताया।
जहां एक ओर सरकार पानी, बिजली और सड़क को प्राथमिकता में बताकर करोड़ों का बजट खर्च कर रही है। वहीं उलीडीह जैसे टोलों की उपेक्षा यह दिखा रही है कि विकास अब भी केवल कागज़ों तक सीमित है।
इस टोले की स्थिति न केवल सरकार की योजनाओं की असलियत उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि योजनाओं के क्रियान्वयन में कितनी खामियां हैं।

क्या कभी इन आवाज़ों तक पहुंचेगा सरकारी तंत्र? उलीडीह टोले की महिलाएं रोज़ पहाड़ चढ़कर पानी लाती रहेंगी या सरकार सच में जमीनी सच्चाई से रूबरू होकर कोई ठोस कदम उठाएगी।यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।
झारखंड सरकार को चाहिए कि वह केवल योजनाओं का प्रचार न करे, बल्कि उनके प्रभाव और पहुंच का ईमानदार मूल्यांकन भी करे। ताकि उलीडीह जैसे दूरदराज के गांव भी असल मायनों में विकास का स्वाद चख सकें।