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    Wednesday, October 29, 2025
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      जमीन फर्जीवाड़ा: जन शिकायत कोषांग और अबुआ साथी पोर्टल की निष्क्रियता!

      रांची दर्पण डेस्क। झारखंड की राजधानी रांची के कांके अंचल कार्यालय में एक गंभीर जमीन फर्जीवाड़ा की शिकायत को ढाई माह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद कोई नतीजा सामने नहीं आया है। यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि कांके अंचल कार्यालय की मिलीभगत और जमीन फर्जीवाड़ा के लिए उसकी कुख्याति को और गहरा करता है। यह घटना झारखंड में बढ़ते भूमि घोटालों और प्रशासनिक प्रणाली में पारदर्शिता की कमी को रेखांकित करती है, जिससे आम नागरिकों का विश्वास डगमगाने लगा है। 

      आशा कुमारी की शिकायत: फर्जीवाड़े का खुलासाः आशा कुमारी ने 4 जून 2025 को कांके अंचल कार्यालय और रांची उपायुक्त को एक शिकायत दर्ज की थी। उनकी शिकायत के अनुसार, उन्होंने और दो अन्य व्यक्तियों ने 2010 में वैध रूप से जमीन खरीदी थी (आरएस प्लॉट नंबर 1335, खाता नंबर 17, केन्दुपावा दोन, मौजा नेवरी, कांके अंचल)। इस जमीन का दाखिल-खारिज 2010 में ही हो चुका था, और वे नियमित रूप से 2025-26 तक लगान का भुगतान कर रही हैं।

      लेकिन 2022 में शेखर राज (पिता अभय कुमार) नामक व्यक्ति ने एक फर्जी डीड के आधार पर 25 डिसमिल में से 12 डिसमिल जमीन का अवैध दाखिल-खारिज करवा लिया। इतना ही नहीं शेखर राज इसके आधार पर ऑनलाइन रसीद भी कटवा रहे हैं। यह स्थिति न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि प्रशासनिक प्रणाली में गंभीर खामियों को उजागर करती है।

      आशा कुमारी ने अपनी शिकायत में इस बात पर हैरानी जताई कि 2010 में वैध दाखिल-खारिज के बाद 2022 में उनकी और अन्य की कुल 25 डिसमिल जमीन में अतिरिक्त 12 डिसमिल, यानी कुल 37 डिसमिल जमीन का दाखिल-खारिज कैसे हो गया। यह न केवल तकनीकी त्रुटि, बल्कि संभावित रूप से सुनियोजित फर्जीवाड़े का मामला प्रतीत होता है, जो कांके अंचल कार्यालय की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है।

      प्रशासनिक निष्क्रियता: निर्देशों का कोई असर नहींः  शिकायत दर्ज होने के बाद, 13 जून 2025 को जन शिकायत कोषांग, रांची ने आशा कुमारी की शिकायत को अपर समाहर्ता को भेजा और तत्काल कार्रवाई का निर्देश दिया (पत्रांक 2847(ii)/ज.शि.को., दिनांक 13/06/2025)। इसके बाद, 19 जून 2025 को अपर समाहर्ता ने कांके अंचल अधिकारी को जांच और प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का आदेश दिया (पत्रांक 3079(ii)/रा., दिनांक 19/06/2025)। लेकिन ढाई माह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद न तो कांके अंचल कार्यालय ने कोई जवाब दिया, न ही कोई ठोस कार्रवाई की गई। यह देरी आशा कुमारी और उनके परिवार में भय और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर रही है।

      प्रशासन की इस चुप्पी ने न केवल आशा कुमारी के मामले को लटकाया है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि सरकारी निर्देश जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो रहे। यह स्थिति नौकरशाही की उदासीनता या संभावित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है, जिसके चलते आम नागरिकों को न्याय के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

      कांके अंचल कार्यालय: फर्जीवाड़े का बड़ा केंद्रः कांके अंचल कार्यालय लंबे समय से जमीन से जुड़े फर्जीवाड़े, अवैध दाखिल-खारिज और अनधिकृत कब्जों के लिए बदनाम रहा है। आशा कुमारी का मामला इस कुख्याति को और पुख्ता करता है। यह समझ से परे है कि डिजिटल भूमि रिकॉर्ड और ऑनलाइन सिस्टम के दौर में भी फर्जी दाखिल-खारिज जैसे मामले कैसे सामने आ रहे हैं।

      झारखंड सरकार ने अवैध भूमि कब्जे और फर्जी दस्तावेजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मुख्य सचिव ने बिहार (झारखंड) भूमि सुधार अधिनियम के तहत फर्जी दस्तावेजों की जांच का आदेश दिया था, लेकिन आशा कुमारी के मामले में कोई प्रगति न होना इस बात का सबूत है कि ये निर्देश कागजों तक ही सीमित रह गए हैं।

      कांके अंचल कार्यालय की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी स्पष्ट है। यह मामला इस बात का संकेत देता है कि बिना कठोर निगरानी और सख्त कार्रवाई के, ऐसे फर्जीवाड़े को रोकना मुश्किल है। यह स्थिति न केवल पीड़ितों के लिए अन्याय का कारण बन रही है, बल्कि प्रशासन के प्रति लोगों का विश्वास भी कम कर रही है।

      जन शिकायत कोषांग और अबुआ साथी पोर्टल: केवल औपचारिकता? झारखंड सरकार ने जन शिकायतों के समाधान के लिए जन शिकायत कोषांग और अबुआ साथी जैसे ऑनलाइन पोर्टल्स शुरू किए हैं। इनका उद्देश्य आम नागरिकों को त्वरित और पारदर्शी समाधान प्रदान करना था। लेकिन आशा कुमारी के मामले में इन पोर्टल्स की निष्क्रियता साफ दिखाई देती है। शिकायत दर्ज होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, जिससे इन पोर्टल्स की प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं।

      रांची प्रशासन ने हाल ही में जन शिकायतों के लिए व्हाट्सएप हेल्पलाइन (9430328080) शुरू की है, लेकिन गंभीर मामलों जैसे इस फर्जीवाड़े में कोई प्रगति नहीं दिख रही। यह स्थिति नीति और कार्यान्वयन के बीच की गहरी खाई को उजागर करती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और ऑनलाइन शिकायत तंत्र के बावजूद अगर पीड़ितों को न्याय के लिए महीनों इंतजार करना पड़ रहा है तो इन पहलों का उद्देश्य अधूरा ही रह जाता है।

      सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया: जवाबदेही की मांगः आशा कुमारी का मामला अब सोशल मीडिया पर जोर पकड़ रहा है। सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता कांके अंचल कार्यालय की कार्यप्रणाली की गहन जांच की मांग कर रहे हैं। यह मामला केवल एक व्यक्ति की जमीन का सवाल नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक जवाबदेही और कानून के शासन का मुद्दा है।

      आशा कुमारी ने अपनी शिकायत में कहा कि यह सिर्फ मेरी जमीन का सवाल नहीं है। यह न्याय और कानून के शासन का सवाल है। प्रशासन की नाक के नीचे ऐसा फर्जीवाड़ा कैसे हो सकता है, और कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?

      सोशल मीडिया पर इस मामले ने लोगों का ध्यान खींचा है और कई लोग इसे व्यवस्थागत भ्रष्टाचार और नौकरशाही की अक्षमता का प्रतीक मान रहे हैं। यह मामला रांची में बढ़ते जमीन फर्जीवाड़े की गंभीर समस्या को उजागर करता है, जो न केवल व्यक्तिगत संपत्ति को खतरे में डाल रहा है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को भी प्रभावित कर रहा है।

      उपायुक्त की भूमिका: उम्मीद की किरण या निराशा?  रांची के उपायुक्त मंजुनाथ भजंत्री ने हाल ही में दाखिल-खारिज के लिए शिविर आयोजित किए हैं, जो प्रशासन की सक्रियता का संकेत देता है। ये शिविर आम लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए एक सकारात्मक कदम हैं। लेकिन आशा कुमारी जैसे गंभीर फर्जीवाड़े के मामले अभी भी अनसुलझे हैं। सभी की नजरें अब उपायुक्त पर टिकी हैं कि क्या वे इस फर्जी दाखिल-खारिज को रद्द कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।

      यह मामला प्रशासन के लिए एक अवसर है कि वह अपनी जवाबदेही और पारदर्शिता को साबित करे। अगर इस मामले में त्वरित और कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह नौकरशाही की उदासीनता का एक और उदाहरण बन जाएगा। उपायुक्त कार्यालय की चुप्पी और देरी ने पहले ही पीड़ितों में असंतोष और अविश्वास को बढ़ावा दिया है।

      न्याय की राह में चुनौतियांः आशा कुमारी का मामला झारखंड में बढ़ते जमीन फर्जीवाड़े और प्रशासनिक देरी की गहरी समस्या को उजागर करता है। यह न केवल एक व्यक्ति की लड़ाई है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की जवाबदेही और पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। डिजिटल युग में भी फर्जी दाखिल-खारिज जैसे मामले प्रशासनिक प्रणाली में गंभीर खामियों को दर्शाते हैं।

      यह मामला रांची प्रशासन के लिए एक सबक हो सकता है। अगर कांके अंचल कार्यालय और उपायुक्त कार्यालय इस मामले में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई करते हैं तो यह न केवल आशा कुमारी को न्याय दिलाएगा, बल्कि अन्य पीड़ितों के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा। लेकिन अगर यह मामला लटकता रहा तो यह प्रशासन के प्रति लोगों का विश्वास और कम करेगा।

      आशा कुमारी की अपनी जमीन के लिए लड़ाई जारी है। यह मामला अब केवल उनकी निजी शिकायत नहीं रहा, बल्कि यह झारखंड में जमीन फर्जीवाड़े और प्रशासनिक सुस्ती के खिलाफ एक बड़ी जंग का प्रतीक बन चुका है। रांची दर्पण इस मामले पर नजर रखेगा और आगे की प्रगति की जानकारी देता रहेगा।

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