रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। झारखंड की अफसरशाही ने सूचना अधिकार अधिनियम का मजाक बनाकर रख दिया है। 5 साल तक सूचना मांगे जाने के बावजूद जब जवाब नहीं मिला तो फिर जुलाई 2021 में दुबारा सूचना उपलब्ध कराने की गुहार लगाई गयी। इस बार सूचक को तृतीय पक्ष बताकर सूचना देने से इंकार कर दिया गया है। यह मामला कांके अंचल कार्यालय का है।
उल्लेखनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ता इंद्रदेव लाल ने अपर समाहर्ता, रांची को आवेदन भेजा था। अपर समाहर्ता कार्यालय ने 19 फरवरी 2016 के ज्ञापन सं-B12(ii) के तहत कांके अंचलाधिकारी को वांछित सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। इस बीच पांच साल गुजर गए पर अंचल कार्यालय ने सूचना उपलब्ध नहीं करायी।
क्या था मामला?: दरअसल, पिठौरिया थाना क्षेत्र के सुतिआंबे मौजा, खाता सं-151, प्लॉट सं-138 के रकबा 90 डिसमिल जमीन को फर्जी कागजात बनाकर नरेश साहु, राजकिशोर साहु उर्फ भानी साहु और दिनेश साहु (सभी के पिता स्व। भगलू साहु) ने जमीन का गलत कागजात बनवाकर अंचल कार्यालय से फर्जी तरीके से इनलोगों ने म्यूटेशन करवा लिया है।
इंद्रदेव लाल का कहना है कि अंचल कार्यालय के कर्मचारियों की इसमें संलिप्तता है। इंद्रदेव लाल ने बताया कि जमीन के असली वारिस अपर बाजार, रांची निवासी आशीष गौतम ने 18 सितंबर 2015 को रांची के उपायुक्त से इसकी लिखित शिकायत की।
शिकायत पत्र के जरिये उन्होंने अवैध जमाबंदी कायम कर अवैध तरीके से अनधिकृत लोगों के नाम से रसीद निर्गत करने पर रोक लगाने और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की थी। श्री गौतम ने खाता सं- 151 और 152 को अपनी पुश्तैनी जमीन बतायी है।
उनका कहना है कि खतियान में उनके पूर्वज परदादा स्व। मथुरा प्रसाद वगैरह के नाम से दर्ज है। उक्त जमीन कोर्ट के जरिए पारिवारिक बंटवारा (वाद सं-74-1943) हो चुका है।
उन्होंने बताया कि जमीन बंटवारे के बाद उनके हिस्से की (90 डिसमिल जमीन, खाता सं-151, प्लॉट सं-138) जमीन को नरेश साहु और राज किशार साहु और दिनेश साहु ने जाली कागजात के आधार पर फर्जी वंशावली को दर्शा कर उक्त जमीन को 20 वर्षों के लिए निबंधित लीज पर दे दिया है।
इस मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग उन्होंने रांची के उपायुक्त से की थी। पांच माह बाद भी जब उपायुक्त की ओर से कोई पहल नहीं की गई, तब सामाजिक कार्यकर्ता इंद्रेदव लाल ने आरटीआई के तहत रांची के अपर समाहर्ता कार्यालय में सूचना अधिकार अधिनियम के तहत इस मामले में सूचना मांगी थी।
सूचक इंद्रदेव लाल के आवेदन पर 19 फरवरी 2016 को रांची के अपर समाहर्ता ने अनुलग्नक सहित सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 6 (3) के अंतर्गत कांके अंचल अधिकारी को वांछित सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।
इस बीच 5 साल गुजर गए पर इंद्रदेव लाल के आवेदन पर कांके अंचल कुंडली मार कर बैठा रहा। कई बार चक्कर लगाने के बाद एक बार फिर इंद्रदेव लाल ने 8 जुलाई 2021 को अपर समाहर्ता को इस संबंध में सूचना देने की गुहार लगाई।
फिर मामला कांके अंचल पहुंचा। 30 सितंबर 2021 को कांके अंचल कार्यालय ने इंद्रदेव लाल को तृतीय पक्ष बता दिया और सूचक से कहा गया कि सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 8(J) (i) के तहत सूचना नहीं दी जा सकती है। इस तरह से इंद्रदेव लाल को कांके अंचल ने एक बार फिर गलत जवाब देकर दोषियों के पक्ष को मजबूत बनाने की कोशिश की है।
कांके अंचल का 4 वर्षों से अंकेक्षण नहीं हुआः बता दें कि आरटीआई एक्टिविस्ट इंद्रदेव लाल कांके अंचल कार्यालय की कार्यशैली पर कई बार सवाल उठा चुके हैं। इसी तरह एक अन्य मामले में इंद्रदेव लाल ने कांके अंचल से सूचना अधिकार अधिनियम के तहत विगत 3 वित्तीय वर्षों की अंकेक्षण रिपोर्ट उपलब्ध कराने की मांग की थी, तो जवाब में कहा गया कि विगत 3 वर्षों से कोई अंकेक्षण नहीं हुआ है।
इंद्रदेव लाल को यह जवाब (ज्ञापांक 146(ii) 20 फरवरी 2020) को भेजा गया था। सूत्र बताते हैं कि कांके अंचल कार्यालय का अभी तक अंकेक्षण कार्य सम्पन्न नहीं हुआ है।
इसके अलावा सूचक का दूसरा सवाल था कि विगत 3 वर्षों से ज्यादा समय से जो कर्मचारी कांके अंचल में कार्यरत हैं, उनकी संपत्ति का विवरण उपलब्ध कराया जाए। इसके जवाब में कहा गया कि यह सूचना अधिकार अधिनियम के तहत नहीं आता है। कांके अंचल में व्याप्त भ्रष्टाचार के कई ऐसे मामले हैं, जिनकी अगर निष्पक्ष जांच हो तो कई बड़े मामले का खुलासा हो सकता है।