मंईयां सम्मान योजना: एंट्री गेट बंद, एग्जिट डोर खुला,नई महिलाओं को हैलो का इंतजार!

रांची दर्पण डेस्क। कल्पना कीजिए, एक ऐसी योजना जो झारखंड की लाखों महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा का ‘सुरक्षा कवच’ बनी, लेकिन अब उसी कवच में एक बड़ा छेद सा लग रहा है। मंईयां सम्मान योजना की शुरुआत तो जोर-शोर से हुई थी, लेकिन 11 महीनों से नई महिलाओं का स्वागत ही बंद।
दूसरी तरफ जैसे ही किसी लाभुक की उम्र 50 पार करती है, पोर्टल खुद-ब-खुद ‘थैंक यू, नेक्स्ट’ कह देता है। नतीजा? 1 लाख 34 हजार से ज्यादा महिलाएं योजना से बाहर हो चुकी हैं, जबकि 18 साल की कोई भी नई पात्र महिला अंदर नहीं घुस पाई। आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि हर महीने 8 हजार से 20 हजार नाम कट रहे हैं, लेकिन नए आवेदन? वे तो पोर्टल के बाहर ‘लाइन’ में ही अटके हुए हैं।
यह कोई साइंस फिक्शन स्टोरी नहीं, बल्कि झारखंड सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना की कड़वी हकीकत है। स्थानीय स्तर पर अधिकारियों का एक ही रट्टा कि पोर्टल खराब है। लेकिन जानकारों का दावा कुछ और ही है। नए लाभुकों को जोड़ने पर ‘अघोषित ब्रेक’ लगा दिया गया है।
योजना के नियम साफ हैं कि 18 से 50 साल की महिलाएं पात्र हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई? केवल ‘बाहर का रास्ता’ खुला है, अंदर का गेट ताला लगा। राज्यभर में करीब ढाई लाख नए आवेदन लंबित पड़े हैं, जो पोर्टल पर अपलोड ही नहीं हो पा रहे।
बता दें कि झारखंड में अगस्त 2024 में लॉन्च हुई मंईयां सम्मान योजना ने शुरुआत में ही धमाल मचा दिया। शुरू में लाभुक महिलाओं को 1,000 रुपये प्रतिमाह की सहायता दी गई। एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण मदद, जो घरेलू खर्चों को थोड़ी राहत देती। लेकिन विधानसभा चुनावों के ठीक पहले सरकार ने इसे ‘डबल इम्पैक्ट’ देने का वादा किया। राशि बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रतिमाह कर दी गई। यह घोषणा महिलाओं के बीच हलचल पैदा कर गई, मानो कोई ‘महिला सशक्तिकरण का लॉटरी टिकट’ मिल गया हो।
फिर आया 6 जनवरी 2025 का वो ऐतिहासिक दिन। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद वर्चुअल मोड से योजना की बढ़ी हुई राशि जारी की। उस दिन 56 लाख 61 हजार 791 लाभुक महिलाओं के बैंक खातों में कुल 1,415 करोड़ 44 लाख रुपये ट्रांसफर हो गए। यह न सिर्फ आंकड़ों की जीत थी, बल्कि झारखंड की महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद की किरण।
लेकिन सफाई अभियान के नाम पर सत्यापन प्रक्रिया ने भी कमाल किया। गलत और फर्जी लाभुकों के 4 लाख 30 हजार नाम हटा दिए गए। कुल मिलाकर, अब तक विभिन्न कारणों से 5 लाख 63 हजार 791 नाम कट चुके हैं, जिनमें उम्र सीमा पार करने वाली 1 लाख 34 हजार महिलाएं प्रमुख हैं।
बीते 11 महीनों (जनवरी से नवंबर तक) में सिर्फ उम्र पूरी होने के चलते 1 लाख 33 हजार 776 नाम हट चुके हैं। हर महीने औसतन 12 हजार नाम गायब हो रहे हैं- कभी 8 हजार, कभी 20 हजार। एक तरफ जहां योजना का ‘इनकमिंग’ जीरो है, वहीं ‘आउटगोइंग’ रफ्तार पकड़ रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो 2026 के अंत तक लाभुकों की संख्या 45 लाख से नीचे चली जाएगी। यह योजना महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का माध्यम है, लेकिन अगर नई पीढ़ी को जगह न मिली तो यह ‘ओल्ड एज क्लब’ बनकर रह जाएगी। सरकार को तुरंत पोर्टल ठीक करना चाहिए और आवेदनों को प्राथमिकता दें।
सवाल यह उठता है कि आखिर नई एंट्री क्यों रुकी हुई है? सरकारी महकमे का आधिकारिक बयान है तकनीकी खराबी। लेकिन सूत्र बताते हैं कि बजट की किल्लत और सत्यापन की जटिलताओं के कारण ‘अनौपचारिक रोक’ लगा दी गई है। योजना का कुल बजट सीमित है और नए नाम जोड़ने से ट्रांसफर का बोझ बढ़ेगा। इसके अलावा पोर्टल पर ‘बैकएंड इश्यू’ की शिकायतें पुरानी हैं। अपलोड फेल हो जाता है या फिर ‘सर्वर डाउन’ का मैसेज आता है।
झारखंड की महिलाएं, जो मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में रहती हैं, इस योजना पर काफी निर्भर हो चली हैं। एक सर्वे (झारखंड महिला आयोग का अनौपचारिक डेटा) बताता है कि 70% लाभुक इसे ‘मासिक सैलरी’ की तरह इस्तेमाल करती हैं। बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर की किराने तक। लेकिन अगर यह ‘एग्जिट-ओनली मोड’ चला तो योजना का मूल उद्देश्य ही पटरी से उतर जाएगा।
मुख्यमंत्री कार्यालय से अभी कोई स्पष्ट घोषणा नहीं आई है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे ‘महिलाओं के साथ धोखा’ करार दिया है। सरकार अगर पोर्टल को ठीक करे और लंबित आवेदनों को क्लियर करे तो योजना फिर से पटरी पर आ सकती है। वरना, यह ‘मंईयां सम्मान’ मात्र नाम का सम्मान रह जाएगा।









