
रांची दर्पण डेस्क। रांची शहर की जीवनरेखा कहे जाने वाले कांके डैम की सुरक्षा अब मजबूत हाथों में आने वाली है। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने डैम क्षेत्र की सटीक सीमांकन और पिलरिंग कराने का बड़ा फैसला लिया है, जिससे भू-माफियाओं और अतिक्रमणकारियों के होश उड़ गए हैं। इस महत्वपूर्ण कार्य पर कुल 30.71 लाख रुपये की राशि खर्च की जाएगी।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि लगातार मिल रही अतिक्रमण की शिकायतों ने आखिरकार विभाग को सख्त कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। कई स्थानों पर हो रहे अवैध निर्माणों ने न केवल डैम की जलग्रहण क्षमता को प्रभावित किया है, बल्कि जल की स्वच्छता पर भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। अब पूरे क्षेत्र का विस्तृत सर्वे कर चिह्नित सीमाओं पर मजबूत पिलर लगाए जाएंगे, जिससे डैम की मूल संपत्ति की रक्षा हो सकेगी।
कांके डैम रांची शहर के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यह डैम शहर की जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत है और इसके बिना रांची की करीब 15 प्रतिशत आबादी की पेयजल जरूरतें अधर में लटक सकती हैं।
इस डैम से पानी की आपूर्ति कांके रोड, गांधी नगर, सीएमपीडीआई, गोंदा टाउन, जवाहर नगर, राजभवन, मोरहाबादी, अपर बाजार, कचहरी चौक, रेडियम रोड, डिप्टीपाड़ा और रिनपास जैसे प्रमुख इलाकों तक पहुंचती है। इनमें राजभवन और मुख्यमंत्री आवास जैसे वीआईपी क्षेत्र भी शामिल हैं, जो इसकी महत्वपूर्णता को और बढ़ाते हैं।
अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि डैम की सुरक्षा समय रहते नहीं की गई, तो शहर में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में डैम क्षेत्र में अतिक्रमण की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। अवैध कब्जाधारियों ने डैम की जमीन पर मकान, दुकानें और अन्य निर्माण कर लिए हैं, जिससे जल संग्रहण क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। इससे न केवल डैम की क्षमता घटी है, बल्कि प्रदूषण का खतरा भी बढ़ गया है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार कई बार स्थानीय लोग और भू-माफिया मिलकर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लेते हैं, जिसकी शिकायतें लगातार विभाग तक पहुंच रही थीं। अब सीमांकन कार्य पूरा होने के बाद क्षेत्र में नियमित निगरानी की व्यवस्था की जाएगी। पिलर लगने के बाद किसी भी प्रकार के अवैध निर्माण पर तुरंत कार्रवाई होगी, जिससे अतिक्रमणकारियों में हड़कंप मचना स्वाभाविक है।
बता दें कि कांके (गोंदा) डैम का निर्माण 1954 में पूरा हुआ था, जो रांची की जल सुरक्षा की नींव रखता है। उस समय डैम के लिए कुल 459.59 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी, जिसमें मिसिरगोंदा, नवासोसो और कटहल गोंदा मौजा की जमीनें शामिल थीं। यह भूमि सरकारी संपत्ति है, लेकिन धीरे-धीरे अतिक्रमणकारियों ने इसमें सेंध लगा दी। हाईकोर्ट इस मामले की लगातार मॉनिटरिंग कर रहा है और अदालत के दबाव ने विभाग को त्वरित कार्रवाई करने पर विवश किया है। अदालत के निर्देशों के तहत ही पिलरिंग और सीमांकन की प्रक्रिया शुरू की गई है।

विभाग ने इस कार्य के लिए निविदा आमंत्रित की है। इच्छुक कंपनियां 18 से 24 नवंबर तक आवेदन कर सकती हैं। निविदा 25 नवंबर को खोली जाएगी, जिसके बाद चयनित कंपनी को कार्यादेश दिया जाएगा। अधिकारियों का दावा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होगी और कार्य जल्द से जल्द पूरा कर लिया जाएगा। सर्वेक्षण के दौरान आधुनिक तकनीकों जैसे जीपीएस और ड्रोन का उपयोग किया जाएगा, ताकि सीमाओं की सटीक पहचान हो सके।
वेशक यह कदम न केवल डैम की रक्षा करेगा, बल्कि रांची शहर की जल सुरक्षा को भी मजबूत बनाएगा। सीमांकन के बाद नियमित गश्त और निगरानी से अतिक्रमण पर पूरी तरह अंकुश लगेगा। शहरवासी इस फैसले से काफी राहत महसूस कर रहे हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि अतिक्रमण के कारण डैम क्षेत्र प्रदूषित हो रहा था, जिसका असर उनके दैनिक जीवन पर पड़ रहा था। अब भू-माफियाओं की मनमानी पर लगाम लगने की उम्मीद है। यह कदम रांची की पर्यावरण संरक्षण और जल प्रबंधन की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा। विभाग ने आश्वासन दिया है कि कार्य पूरा होने के बाद डैम क्षेत्र को हरा-भरा और सुरक्षित बनाया जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस जलस्रोत का लाभ उठा सकें।









