
रांची दर्पण डेस्क/मुकेश भारतीय। वर्ष 2025 को यादगार बनाने वाली झारखंड भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की शराब घोटाला जांच ने न केवल राज्य के वित्तीय ढांचे को मजबूत करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं, बल्कि पूरे देश को एक संदेश दिया है कि कानून का राज अब किसी की मनमानी से ऊपर है।
यह जांच शुरू में एक साधारण शराब नीति की अनियमितताओं से जुड़ी लग रही थी। लेकिन एसीबी अब एक विशाल अंतर्राज्यीय नेटवर्क को उजागर कर चुकी है। जिसमें वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, प्रभावशाली कारोबारी और विभिन्न राज्यों के ठेकेदार शामिल हैं।
एसीबी की इस मुहिम ने न सिर्फ लाखों करोड़ों के कथित नुकसान को रोकने का रास्ता खोला है, बल्कि आम जनता में विश्वास जगाया है कि सत्ता के गलियारों में भी पारदर्शिता की रोशनी पहुंच सकती है।
दरअसल यह सब शुरू हुआ था झारखंड सरकार की शराब नीति में कथित अनियमितताओं से, जहां ठेकों के आवंटन में पारदर्शिता की कमी और पक्षपातपूर्ण फैसलों ने राज्य के खजाने को चपेट में ले लिया था।
एसीबी की विशेष टीम ने जून 2025 में प्राथमिकी संख्या-9/2025 दर्ज कर जांच शुरू की, जो जल्द ही एक स्टॉर्म में बदल गई। जांच एजेंसी ने दस्तावेजों, बैंक रिकॉर्ड्स और गुप्त सूत्रों के आधार पर ऐसे तथ्य उजागर किए, जो न केवल राज्य के वित्तीय नुकसान को करोड़ों में आंकते हैं, बल्कि नीति निर्माण में बाहरी हस्तक्षेप के गहरे राज भी खोलते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घोटाला केवल शराब के व्यापार तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक सुनियोजित सिस्टम था, जो सरकारी संसाधनों को निजी हितों के लिए मोड़ रहा था।
इस घोटाले का सबसे रोचक और साहसिक पहलू रहा वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को जांच के दायरे में लाना। सस्पेंडेड आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे, जिन पर शराब नीति में अनुचित हित साधने और राज्य को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाने के आरोप हैं, उन्हें विशेष एसीबी अदालत ने डिफॉल्ट बेल प्रदान की है।
एसीबी द्वारा 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल न करने के कारण यह फैसला आया, लेकिन कोर्ट की शर्तें कड़ी हैं राज्य छोड़ने से पहले सूचना देना और मोबाइल नंबर न बदलना।
चौबे का मामला न केवल व्यक्तिगत भ्रष्टाचार का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि एसीबी अब ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों को भी बख्शने को तैयार नहीं। इसी कड़ी में, अन्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को समन जारी किए गए हैं, जिनकी पूछताछ से और भी बड़े खुलासे होने की उम्मीद है। यह कदम निश्चित रूप से युवा नौकरशाहों के लिए एक चेतावनी है कि सेवा का मतलब सत्ता का दुरुपयोग नहीं, बल्कि जनकल्याण है।
एसीबी की तलाशी अभियान ने सीमाओं को पार कर लिया है। छत्तीसगढ़ आधारित व्यवसायी सिद्धार्थ सिंघानिया, जो रांची में शराब अनुबंधों के कथित बड़े घोटाले का मुख्य सूत्रधार माना जाता है, उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका है। एसीबी की टीमें उनकी तलाश में छत्तीसगढ़ और दिल्ली के रास्ते पर हैं।
इसी तरह रांची के स्थानीय व्यवसायी विनय कुमार सिंह समेत कई अन्य आरोपी के खिलाफ नोटिस चस्पा किए गए हैं। लेकिन सबसे सनसनीखेज मोड़ आया, जब एसीबी ने महाराष्ट्र और गुजरात से सात प्रमुख आरोपियों को गिरफ्तार किया।
इन पर सरकारी ठेकों में वित्तीय अनियमितताओं और नेटवर्क बनाने का आरोप है। गिरफ्तार आरोपियों को रांची लाकर एसीबी कोर्ट में पेश किया गया, जहां जमानत याचिकाओं पर सख्ती से सुनवाई हो रही है।
दिल्ली, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में भी पूछताछ और समन जारी हैं, जो इस घोटाले को एक पैन-इंडिया कांस्पिरेसी के रूप में चित्रित करते हैं। एसीबी के एक अधिकारी ने बताया कि यह नेटवर्क इतना जटिल था कि एक राज्य का घोटाला दूसरे राज्य के कारोबार को प्रभावित कर रहा था। अब हम इसे जड़ से उखाड़ फेंकने को प्रतिबद्ध हैं।
जांच का यह सिलसिला अब राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुका है। एसीबी की एफआइआऱ के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इसीआइआऱ 10/2025 दर्ज कर मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) की जांच शुरू कर दी है।
ईडी की विशेष अदालत ने आरोपियों से पूछताछ की अनुमति दे दी है, जिससे मामला भ्रष्टाचार से आगे बढ़कर धन शोधन के गंभीर आरोपों तक पहुंच गया। ईडी की जांच से अब बैंक खातों, प्रॉपर्टी डील्स और विदेशी लेन-देन पर नजर पड़ी है, जो घोटाले की गहराई को और उजागर कर सकती है।
यह कदम न केवल पीड़ित राज्य के लिए राहत है, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम करता है कि आर्थिक अपराधों पर अब कोई ढील नहीं बरती जाएगी।
इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि 2025 झारखंड एसीबी के लिए भ्रष्टाचार-रोधी लड़ाई का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ है। जहां पहले विभागीय पूछताछ तक सीमित रहने वाली कार्रवाई अब वैश्विक धन-प्रवाह, पॉलिसी प्रभावित करने वाले मामलों और अंतर-राज्यीय साजिशों पर केंद्रित हो गई है।
राज्य सरकार ने एसीबी को और मजबूत बनाने के लिए विशेष फंड आवंटित किया है, जबकि नागरिक समाज संगठन इस मुहिम की सराहना कर रहे हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि यह केवल एक घोटाला नहीं, बल्कि सिस्टम की सफाई का प्रतीक है। इससे युवा पीढ़ी को लगेगा कि बदलाव संभव है।
झारखंड की यह कहानी न केवल रोचक है, बल्कि प्रेरणादायक भी। क्योंकि यह बताती है कि सच्चाई और कानून की ताकत से कोई भी ऊंचा पद वाला व्यक्ति अछूता नहीं रह सकता। उम्मीद है कि एसीबी आने वाले साल में ऐसे और भी कदम देखने को मिलेंगे।









