
रांची दर्पण डेस्क। रांची की धार्मिक धरोहर और ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर तक पहुंचने वाला मार्ग आजकल मौत का सौदा बन चुका है। बारिश से ढह चुका गार्डवाल, दरारों से चीखती सड़क और धंसते रास्ते सब अब भी वैसा ही पड़ा है, जैसे कोई भूला हुआ सपना।
विगत 23 अगस्त को हुई तबाही के चार महीने बाद भी मरम्मत का नामोनिशान नहीं। क्या प्रशासन की लापरवाही भक्तों की जान पर भारी पड़ जाएगी? खासकर जब 25 दिसंबर को मंदिर का स्थापना दिवस आने वाला है और हजारों श्रद्धालु यहां उमड़ पड़ेंगे।
जरा कल्पना कीजिए कि एक तरफ शहर का चमचमाता क्रिकेट स्टेडियम, विधानसभा भवन और हाईकोर्ट की भव्य इमारतें, वहीं दूसरी तरफ मंदिर मार्ग पर जर्जर गार्डवाल का मलबा और सड़क पर गहरी खाई। 23 अगस्त की उस भयानक रात को जब आसमान फट पड़ा तो जगन्नाथपुर का गार्डवाल धराशायी हो गए।
सड़क में इतनी गहरी दरारें पड़ गईं कि वाहन चलाना जोखिम भरा हो गया। घटना के तुरंत बाद जिला प्रशासन के अधिकारी पहुंचे। वादे किए कि जल्द मरम्मत होगी, चिंता न करें। लेकिन आज चार महीने गुजरने के बाद भी साइट पर सिर्फ बैरिकेडिंग लगी है। भक्तों को वाहन लेकर ऊपर चढ़ने से रोका जा रहा है, ताकि कोई अनहोनी न हो। लेकिन ये अस्थायी बंदोबस्त स्थायी खतरे को कैसे रोकेगा?
मंदिर समिति में रांची के उपायुक्त (डीसी) समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल हैं। फिर भी इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सन्नाटा क्यों? स्थानीय निवासियों का कहना है कि बार-बार शिकायतें की गईं, लेकिन फंड की कमी या समय की कमी जैसे बहाने ही सुनाई देते रहे।
एक बुजुर्ग भक्त रामेश्वर महतो ने ‘रांची दर्पण’ से बातचीत में कहा कि ये मंदिर हमारी आस्था का केंद्र है। यहां भगवान जगन्नाथ की कृपा सबको मिलती है, लेकिन अगर रास्ता ही टूटा पड़ा है तो पूजा कैसे करें? 25 दिसंबर को तो पूरा शहर यहां आ जाएगा। ऐसे में कोई दुर्घटना हो गई तो जिम्मेदारी किसकी?”
बता दें कि यह मंदिर रांची के हृदय स्थल पर बसा है। क्रिकेट स्टेडियम से महज कुछ किलोमीटर दूर। शहर की चकाचौंध के बीच ये धार्मिक स्थल सदियों से खड़ा है, लेकिन विकास की दौड़ में भुला दिया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि बारिश का पानी सड़क के नीचे की मिट्टी को खोखला कर रहा है, जो कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकता है। जिला प्रशासन को तत्काल कदम उठाने चाहिए। वरना आस्था का ये पर्व खतरे की घंटी बन सकता है।










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