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53 एकड़ से 17 एकड़ रह गया रांची बड़ा तालाब, 36 एकड़ निगल गया अतिक्रमण

Ranchi's Bada Talab (large pond) has shrunk from 53 acres to 17 acres; encroachment has swallowed up 36 acres.

रांची दर्पण डेस्क। झारखंड की राजधानी रांची की पहचान माने जाने वाले ऐतिहासिक बड़ा तालाब पर अतिक्रमण का ऐसा जाल बिछा कि 53 एकड़ में फैला यह जलस्रोत अब सिमटकर महज़ 17 एकड़ रह गया है। शेष 36 एकड़ भूमि बीते वर्षों में अवैध कब्जों, फर्जी निर्माणों और कथित भू-माफिया के सुनियोजित खेल की भेंट चढ़ गई। यह सिर्फ एक तालाब की कहानी नहीं, बल्कि शहरी प्रशासन, पर्यावरणीय लापरवाही और राजनीतिक-प्रशासनिक संरक्षण के आरोपों से जुड़ा एक बड़ा सवाल है।

स्थानीय दस्तावेजों, पुराने नक्शों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बड़ा तालाब कभी आसपास के इलाकों के लिए जल संरक्षण, भू-जल रिचार्ज और जल निकासी का प्रमुख स्रोत था। लेकिन जैसे-जैसे शहर फैला, वैसे-वैसे तालाब की जमीन पर दुकानें, पक्के मकान, बाउंड्री वॉल और अस्थायी ढांचे खड़े होते चले गए।

चौंकाने वाली बात यह है कि कई निर्माण वर्षों से मौजूद हैं, लेकिन अब तक उनके विरुद्ध कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई। सवाल उठता है कि क्या यह सब प्रशासन की जानकारी के बिना हुआ या जानबूझकर आंखें मूंद ली गईं?

लगातार बढ़ते दबाव और जनआक्रोश के बाद अब रांची नगर निगम हरकत में आया है। निगम सभागार में प्रशासक सुशांत गौरव की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में बड़ा तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराने का स्पष्ट आदेश जारी हुआ।

हालांकि प्रशासक ने दो टूक कहा है कि बड़ा तालाब शहर की पहचान है। इसके संरक्षण में किसी भी स्तर की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अतिक्रमण की सटीक पहचान के लिए निगम ने ड्रोन मैपिंग कराने का निर्णय लिया है। आधुनिक तकनीक से यह साफ हो जाएगा कि तालाब की मूल सीमा क्या थी और कहां-कहां अवैध कब्जे हैं। सूत्रों के मुताबिक ड्रोन सर्वे के बाद केस दर्ज करने, अवैध निर्माण गिराने और कब्जाधारियों पर कानूनी कार्रवाई की तैयारी है।

सबसे बड़ी बात कि सिर्फ जमीन ही नहीं, तालाब का पानी भी संकट में है। तालाब में गिरने वाले अपशिष्ट जल के कारण पानी की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। इसी को देखते हुए प्रशासक ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को पूर्ण क्षमता से तत्काल चालू करने का निर्देश दिया है, ताकि गंदा पानी सीधे तालाब में न पहुंचे।

बैठक में सेवा सदन के पास जलजमाव की समस्या भी गंभीरता से उठी। अभियंताओं को डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करने का आदेश दिया गया, ताकि स्थायी समाधान निकाला जा सके और मानसून के दौरान लोगों को राहत मिले।

शहरवासियों के मन में सबसे बड़ा सवाल यही है कि 36 एकड़ जमीन पर कब्जा अचानक तो नहीं हुआ होगा। वर्षों तक प्रशासन कहां था? क्या भू-माफिया को राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण मिलता रहा? यदि आने वाले दिनों में यह अभियान केवल औपचारिकता बनकर रह गया तो जनता का भरोसा टूटना तय है।

नगर निगम ने घोषणा की है कि सोमवार से अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू होगा। तालाब के चारों ओर फैले पूरे 53 एकड़ क्षेत्र की मापी, संरचनाओं की वैधता जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

इस अहम बैठक में अपर प्रशासक संजय कुमार, उप प्रशासक रविंद्र कुमार, उप प्रशासक गौतम प्रसाद साहू, सहायक प्रशासक, नगर प्रबंधक सहित कई विभागों के अधिकारी मौजूद थे।

अब देखना यह है कि नगर निगम का यह अभियान इतिहास रचेगा या फाइलों में दफन होकर रह जाएगा। क्योंकि बड़ा तालाब सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि रांची के पर्यावरणीय भविष्य का आईना है। अगर अब भी सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह तालाब केवल किताबों और पुरानी तस्वीरों में ही रह जाएगा।

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