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बिरसा मुंडा जैविक उद्यान प्रबंधन की घोर लापरवाही से हुई मिष्टी की मौत

ओरमांझी, 19 अक्टूबर 2025 (रांची दर्पण)। ओरमांझी स्थित भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में जिराफ मिष्टी की मौत ने चिड़ियाघर प्रबंधन की घोर लापरवाही को उजागर किया है। मिष्टी की मौत 3 सितंबर 2025 को हुई थी और इस घटना ने न केवल पशु प्रेमियों को झकझोर दिया है, बल्कि प्रबंधन की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। जांच में सामने आए तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि मिष्टी की मौत का कारण प्रबंधन की लापरवाही और अव्यवस्था थी।Mishti died due to gross negligence of Birsa Munda Biological Park management 1

जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार मिष्टी के बाड़े में बारिश और सफाई के दौरान पानी जमा होने की गंभीर समस्या थी। इस पानी के कारण बाड़े का फर्श कीचड़युक्त और फिसलन भरा रहता था। इसी फिसलन के कारण मिष्टी का पैर फिसला और उसे गंभीर चोट लगी। चोट के बाद उसका संतुलन बिगड़ गया, जिसके परिणामस्वरूप वह गिर पड़ी। इस दुर्घटना ने जिराफ की हालत को इतना गंभीर कर दिया कि इलाज के बावजूद उसकी जान नहीं बचाई जा सकी।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बाड़े की मरम्मत के लिए हाल ही में लाखों रुपये खर्च किए गए थे। प्रबंधन ने दावा किया था कि यह मरम्मत जिराफ के लिए सुरक्षित और उपयुक्त वातावरण तैयार करने के लिए की गई थी। हालांकि जांच में पाया गया कि मरम्मत कार्य में भारी अनियमितताएं थीं। सीमेंट की परत ठीक से नहीं लगाई गई थी और पानी निकासी की व्यवस्था पूरी तरह से अपर्याप्त थी। इसके चलते बाड़ा बारिश और सफाई के समय पानी से भर जाता था, जिसका सीधा असर मिष्टी की सेहत पर पड़ा।

मिष्टी की मौत का एक अन्य प्रमुख कारण प्रबंधन द्वारा नियमित निरीक्षण और उचित चिकित्सीय देखभाल की कमी थी। जांच में सामने आया कि मिष्टी का स्वास्थ्य नियमित रूप से जांचा नहीं जा रहा था। इसके अलावा उसे निर्धारित कोरेंटाइन अवधि पूरी होने से पहले ही आम दर्शकों के लिए प्रदर्शन में रख दिया गया था, जो नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।

विशेषज्ञों का कहना है कि कोरेंटाइन अवधि का पालन न करना मिष्टी की सेहत के लिए हानिकारक साबित हुआ। जब मिष्टी की तबीयत बिगड़ने लगी, तब भी चिकित्सीय देखभाल में देरी हुई। समय पर इलाज और विशेषज्ञों की सलाह न लेने के कारण उसकी स्थिति और खराब हो गई। पशु चिकित्सकों का कहना है कि यदि समय पर उचित उपचार शुरू किया गया होता तो शायद मिष्टी की जान बचाई जा सकती थी।

मिष्टी की मौत ने भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े किए हैं। स्थानीय पशु प्रेमी और पर्यावरण कार्यकर्ता इस घटना को लेकर आक्रोशित हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में पहले भी कई बार प्राणियों की देखभाल में लापरवाही के मामले सामने आए हैं।

पिछले साल एक बाघ के बाड़े में भी इसी तरह की समस्याएं देखी गई थीं, लेकिन प्रबंधन ने उनसे कोई सबक नहीं लिया। मिष्टी की मौत के बाद अब यह मांग उठ रही है कि चिड़ियाघर के प्रबंधन की पूरी जांच हो और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान प्रबंधन ने इस घटना पर खेद जताया है और दावा किया है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे। बाड़े की मरम्मत और पानी निकासी की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी गई है। साथ ही सभी प्राणियों के स्वास्थ्य की नियमित जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा।

हालांकि, पशु प्रेमियों और स्थानीय लोगों का कहना है कि ये कदम पहले उठाए जाने चाहिए थे। मिष्टी की मौत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल कागजी कार्रवाई और वादों से काम नहीं चलेगा। चिड़ियाघर में प्राणियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए ठोस और पारदर्शी कदम उठाने की जरूरत है।

बहरहाल मिष्टी की मौत न केवल एक दुखद घटना है, बल्कि यह भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान के प्रबंधन की कमियों को भी दर्शाती है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे चिड़ियाघर और जैविक उद्यान वास्तव में प्राणियों की देखभाल के लिए तैयार हैं?

मिष्टी की मौत से सबक लेते हुए यह जरूरी है कि प्रबंधन अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से ले और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए। पशु प्रेमी और रांची के नागरिक अब इस मामले में कड़ी कार्रवाई और पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं, ताकि भविष्य में किसी अन्य प्राणी को मिष्टी की तरह अपनी जान न गंवानी पड़े।

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