
रांची दर्पण डेस्क। विगत 15 दिसंबर 2025 को पटना के प्रतिष्ठित संवाद भवन में घटा एक छोटा-सा दृश्य देखते-देखते देशव्यापी बहस का केंद्र बन गया। बिहार सरकार के AYUSH डॉक्टरों की नियुक्ति समारोह के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नियुक्ति पत्र सौंपते समय महिला डॉक्टर डॉ. नुसरत परवीन का हिजाब खींचते हुए सवाल कर दिया कि यह क्या है? फिर क्या था। मंच पर तालियां बजीं, कैमरे चले और कुछ सेकंड में ही वह क्षण सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया।
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति या एक मंच तक सीमित नहीं रही। इसे महिलाओं की गरिमा, धार्मिक स्वतंत्रता और सत्ता के आचरण से जोड़कर देखा जाने लगा। विपक्ष ने इसे नारी अपमान और संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन बताया तो सत्ता पक्ष ने गलतफहमी कहकर बात संभालने की कोशिश की। लेकिन सार्वजनिक माफी न आने से विवाद और गहराता चला गया।
डॉ. नुसरत परवीन बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित हुई थीं और 20 दिसंबर को होने वाली जॉइनिंग से इन्कार कर दिया। उनका कहना था कि वे सेवा करना चाहती थीं, लेकिन सार्वजनिक अपमान के साथ नहीं। उनके परिवार ने भी इसे केवल एक महिला नहीं, बल्कि पूरे समुदाय की गरिमा से जुड़ा मामला बताया। इसके बाद पटना से लेकर रांची, लखनऊ और बेंगलुरु तक शिकायतें दर्ज होने लगीं और राजनीतिक तापमान तेजी से चढ़ गया।
इसी बीच झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने इस विवाद में एंट्री ली और सियासत को नया मोड़ दे दिया। 19 दिसंबर को रांची में आयोजित एक स्वास्थ्य विभागीय कार्यक्रम में मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने हिजाब पहनी एक महिला डॉक्टर को सम्मानपूर्वक नियुक्ति पत्र सौंपा।
इसके साथ ही झारखंड सरकार की ओर से डॉ. नुसरत को जो ऑफर सामने आया, उसने सबको चौंका दिया। प्रति माह 3 लाख रुपये वेतन, मनचाही पोस्टिंग, सरकारी आवास, 24×7 सुरक्षा और सम्मानजनक कार्य वातावरण।
मंत्री ने इसे सम्मान की बहाली बताते हुए कहा कि हिजाब खींचना सिर्फ एक महिला नहीं, बल्कि संविधान और इंसानियत का अपमान है।
झारखंड सरकार के इस कदम पर सोशल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया। समर्थकों ने इसे समावेशी शासन और संवैधानिक मूल्यों की जीत बताया। वहीं आलोचकों ने इसे खुलकर वोटबैंक की राजनीति करार दिया।
सवाल उठे कि जब राज्य में डॉक्टरों की भारी कमी है और स्वास्थ्य बजट पहले से दबाव में है तो क्या इस तरह के विशेष ऑफर न्यायसंगत हैं? क्या यह अन्य योग्य डॉक्टरों के साथ भेदभाव नहीं पैदा करेगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम कोई मानवीय संवेदना नहीं, बल्कि आने वाले चुनावों को देखते हुए एक सियासी संदेश भी है। एक तरफ बिहार में नीतीश कुमार की सुशासन की छवि को झटका लगा है तो दूसरी तरफ झारखंड सरकार खुद को अल्पसंख्यक हितैषी और समावेशी दिखाने की कोशिश में जुटी है।
दरअसल यह पूरा विवाद अब हिजाब से आगे बढ़कर सत्ता, संवैधानिक मर्यादा और राजनीतिक नैतिकता पर आ टिका है। सवाल यह नहीं रह गया कि किसने क्या पहना, बल्कि यह है कि सत्ता में बैठे लोग महिलाओं प्रति कैसा व्यवहार करते हैं।
फिलहाल डॉ. नुसरत परवीन की ओर से झारखंड सरकार के ऑफर पर कोई अंतिम प्रतिक्रिया नहीं आई है, हालांकि स्वास्थ्य विभाग उनके संपर्क में बताया जा रहा है। क्या वे इस प्रस्ताव को स्वीकार करेंगी या यह मामला और गहराएगा। यह आने वाला समय बताएगा।
लेकिन इतना तय है कि पटना में हुआ एक क्षणिक कृत्य अब रांची तक सियासी बहस का चेहरा बन चुका है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सम्मान वास्तव में संवेदनशीलता से मिलता है या फिर उसे भी राजनीति का औजार बना दिया गया है?









