कांके अंचल में अवैध दाखिल-खारिज की बाढ़ (भाग-2): रजिस्ट्री और भौतिक कब्जे पर सवाल

रांची दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय। झारखंड की राजधानी रांची अंतर्गत कांके अंचल में एक बार फिर अजूबा भूमि मामले ने सुर्खियां बटोरी हैं। खाता संख्या-17, आरएस प्लॉट नंबर-1335, केंदुआपावा दोन, मौजा-नेवरी की 25 डिसमिल रैयती भूमि को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इस भूमि पर आशा कुमारी, सियाशरण प्रसाद और बालेश्वर प्रसाद ने वर्ष 2010 में विधिवत रजिस्ट्री के माध्यम से स्वामित्व प्राप्त किया था। लेकिन 2021 में राज शेखर द्वारा इस भूमि के 12 डिसमिल पर दाखिल-खारिज करवाए जाने ने इस मामले को और जटिल बना दिया है। क्या यह प्रशासनिक चूक है या जानबूझकर किया गया अवैध हस्तांतरण? रांची दर्पण इस मामले की तह तक गया है।
रजिस्ट्री और स्वामित्व का कानूनी आधार
रांची दर्पण के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 2010 में आशा कुमारी, सियाशरण प्रसाद और बालेश्वर प्रसाद ने इस 25 डिसमिल भूमि को विधिवत रजिस्ट्री के माध्यम से क्रय किया था। रजिस्ट्री के तहत जमाबंदी में आशा कुमारी को 05 डिसमिल, सियाशरण प्रसाद को 08 डिसमिल और बालेश्वर प्रसाद को 12 डिसमिल भूमि का हिस्सा मिला। यह रजिस्ट्री छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 (सीएनटी अधिनियम) की धारा 46 और 49 के प्रावधानों के अनुरूप थी, जो रैयती भूमि के हस्तांतरण को सख्त नियमों के तहत नियंत्रित करती है।
रजिस्ट्री के बाद उसी वर्ष कांके अंचल कार्यालय में दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) की प्रक्रिया पूरी की गई। इसके परिणामस्वरूप तीनों व्यक्तियों के नाम झारभूमि पोर्टल पर दर्ज किए गए, जो झारखंड भू-राजस्व नियमावली के तहत उनके स्वामित्व को औपचारिक मान्यता देता है।
इसके अतिरिक्त, तीनों ने 2010 से इस भूमि पर निर्विवाद भौतिक कब्जा बनाए रखा है। खेती, बाउंड्री निर्माण और अन्य उपयोग के माध्यम से उनका कब्जा स्पष्ट रूप से स्थापित है, जो स्वामित्व का एक महत्वपूर्ण कानूनी सबूत है। तीनों ने नियमित रूप से भूमि की रसीद कटवाई है, जो 2025-26 तक देय है। रांची दर्पण द्वारा सत्यापित इन रसीदों से झारभूमि पोर्टल पर उनके स्वामित्व की और पुष्टि होती है।
रजिस्ट्री, दाखिल-खारिज, भौतिक कब्जा और रसीदों का यह संयोजन आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों के स्वामित्व को कानूनी रूप से अत्यंत मजबूत बनाता है।
सवालों के घेरे में राज शेखर का दाखिल-खारिज
वर्ष 2021 में राज शेखर ने उसी भूमि के 12 डिसमिल पर दाखिल-खारिज करवाया, जो आश्चर्यजनक और संदिग्ध है। रांची दर्पण के विश्लेषण में कई गंभीर सवाल उभरकर सामने आए हैं:
दस्तावेजों की वैधता: राज शेखर ने दाखिल-खारिज के लिए किन दस्तावेजों का उपयोग किया? क्या उनके पास कोई वैध रजिस्ट्री या बिक्री पत्र था?
भौतिक कब्जे का अभाव: दस्तावेजों और स्थानीय जांच से स्पष्ट है कि राज शेखर ने कभी इस भूमि पर भौतिक कब्जा स्थापित नहीं किया। फिर भी दाखिल-खारिज कैसे स्वीकृत हुआ?
प्रशासनिक चूक या मिलीभगत: क्या कांके अंचल कार्यालय ने राज शेखर के दस्तावेजों का उचित सत्यापन किया? या यह एक प्रशासनिक त्रुटि थी या इससे भी गंभीर, अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम?
रांची दर्पण ने कांके अंचल कार्यालय से इस मामले में उनका पक्ष जानने का प्रयास किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। हमने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत राज शेखर के दाखिल-खारिज के आधार दस्तावेजों (जैसे रजिस्ट्री या बिक्री पत्र) और स्वीकृति आदेश की जानकारी मांगी है।
भौतिक कब्जा और कानूनी स्थिति
कानूनी रूप से भौतिक कब्जा स्वामित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है। आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों ने 2010 से इस भूमि पर निर्विवाद कब्जा बनाए रखा है, जो उनके दावे को और मजबूत करता है। इसके विपरीत राज शेखर का इस भूमि पर कोई भौतिक कब्जा नहीं है, जो उनके दाखिल-खारिज की वैधता पर गंभीर सवाल उठाता है।
झारखंड भू-राजस्व नियमावली और सीएनटी अधिनियम के तहत दाखिल-खारिज के लिए रजिस्ट्री और भौतिक कब्जे का सत्यापन अनिवार्य है। यदि राज शेखर के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं या उन्होंने भौतिक कब्जा स्थापित नहीं किया तो उनका दाखिल-खारिज अवैध माना जा सकता है।
कांके अंचल कार्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल
यह मामला न केवल कांके अंचल कार्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि झारखंड में भूमि रिकॉर्ड और दाखिल-खारिज की प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी प्रकाश डालता है। रांची दर्पण इस मामले की गहराई से जांच कर रहा है और RTI के जवाब के आधार पर इसकी अगली कड़ी प्रकाशित करेगा।
हम प्रशासन से मांग करते हैं कि इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई हो। साथ ही आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों के वैध स्वामित्व को संरक्षित किया जाए।
आपकी राय मायने रखती है
क्या आपने भी झारखंड में भूमि रिकॉर्ड से संबंधित समस्याएँ झेली हैं? क्या आपके पास भी दाखिल-खारिज या रसीद से संबंधित मनमानी बरते जाने या समस्या नहीं सुने जाने का कोई अनुभव है? तो हमें अपनी कहानी बताएँ। शायद राँची दर्पण आपके दर्द कम करने का जरिया बन जाए। संपर्क करें:
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सच मानिए, रांची दर्पण का यह प्रयास झारखंड के नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और प्रशासनिक सुधार की माँग करने का एक कदम है। हमारे साथ जुड़े रहें, क्योंकि हम इस मामले को और गहराई से उजागर करेंगे। ताकि हरेक नागरिक वह सब कुछ जान सकें, जो जमीन भयानक खेल चल रहा है। इसका शिकार कोई भी कभी भी हो सकता है।
अगला लेख (भाग-3) में पढ़ेंगे: जानें राज शेखर के संदिग्ध दाखिल-खारिज का रहस्य।