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कांके में फर्जी निबंधन और जमाबंदी का काला धंधा जारी, प्रशासन की टालमटोल नीति से पीड़ित हलकान!

रांची दर्पण ब्यूरो डेस्क। झारखंड की राजधानी रांची में भूमि माफिया का काला कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा। एक ओर जहां डिजिटल इंडिया के दौर में ऑनलाइन रसीदें और ई-गवर्नेंस की हवा उड़ाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारी दफ्तरों में फाइलें ‘ढाक के तीन पात’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रही हैं।

कांके अंचल के एक छोटे से प्लॉट पर फर्जी डीड के सहारे अवैध दाखिल-खारिज का मामला अब छह महीने से अधिक समय से लटका हुआ है और रांची जिला प्रशासन की लापरवाही ने पीड़ितों को न्याय के द्वार से निराशा ही नसीब की है। क्या यह महज एक संयोग है कि भूमि सुधार अधिनियम की धारा 46 के तहत फर्जी दस्तावेजों पर तत्काल कार्रवाई का प्रावधान होने के बावजूद जिला आयुक्त मंजूनाथ भजयंत्री के कार्यालय से लेकर कांके अंचलाधिकारी तक की मशीनरी ‘सोई’ हुई नजर आ रही है? आइए, इस घोटाले की परतें खोलते हैं।

मामला खाता संख्या-17, आरएस प्लॉट नंबर-1335, नामजमीन केन्दुपावा दोन, मौजा-नेवरी (थाना सदर, कांके अंचल) की 25 डिसमिल भूमि का है। यह जमीन झारखंड सरकार के नाम दर्ज है और 2010 में (दिनांक 28.10.2010) तीन खरीदारों ने ने वैध डीड के जरिए खरीदी। कुल रकबा 25 डिसमिल में से विभिन्न हिस्सों (05, 08, 12 डिसमिल) का दाखिल-खारिज कराया गया और 2025-26 तक लगान चुकता है। पीड़ितों ने ऑनलाइन रसीदें कटवाकर सब कुछ पारदर्शी रखा।

लेकिन 2022 में अचानक एक ‘जमीन दलाल’ ने फर्जी डीड के बल पर उस प्लॉट पर 12 डिसमिल की अतिरिक्त जमाबंदी करा ली। इसी वर्ष अप्रैल, 2025 सोशल मीडिया पर वायरल हुई उसकी डीड की जांच पर खुलासा हुआ कि कांके अंचल कार्यालय से मिलीभगत से अवैध दाखिल-खारिज कराया गया और तब से उस दलाल की भी 12 डिसमिल की ऑनलाइन रसीद काटा रहा है। पीड़ितों ने अपनी शिकायत में साफ लिखा है कि वर्ष 2010 में पूर्ण दाखिल-खारिज हो चुका था तो यह फर्जीवाड़ा कैसे संभव है? यह जांच और कड़ी कार्रवाई का विषय है।

पीड़ितों ने 04 जून 2025 और 10 जून 2025 को कांके अंचलाधिकारी को सीधे शिकायतें भेजीं, लेकिन कोई सुनवाई न हुई। फिर एक पीड़िता ने जिला आयुक्त मंजूनाथ भजयंत्री को लिखित शिकायत सौंपी। आयुक्त कार्यालय ने इसे तत्काल जन शिकायत कोषांग (प्रभारी पदाधिकारी) में भेज दिया, जिन्होंने 13 जून 2025 को पत्रांक 2847 (ii)/जशिको जारी कर अपर समाहर्ता (राजस्व) को कार्रवाई का निर्देश दिया। अपर समाहर्ता ने 17 जून 2025 को पत्रांक 28521 (ii)/रासंसं के जरिए कांके अंचलाधिकारी से नियमानुसार कार्रवाई और अविलंब प्रतिवेदन’ की मांग की।

लेकिन छह महीने बाद भी यानी दिसंबर 2025 तक कांके सीओ की ओर से कोई रिपोर्ट जन शिकायत कोषांग या अपर समाहर्ता को नहीं पहुंची। अगर रिपोर्ट बनी भी तो पीड़ितों को उपलब्ध नहीं कराई गई। जन शिकायत कोषांग और अपर समाहर्ता कार्यालय के कर्मी पीड़ितों को यही दोहराते रहे कि कांके सीओ से जाकर खुद मिल लो। शिकायतकर्ता ने अपर समाहर्ता से कई बार मुलाकात की। लेकिन हर बार टालमटोल की गई। रांची उपायुक्त को कई बार अतिरिक्त आवेदन दिए, लेकिन नतीजा? वही ‘ढाक के तीन पात’।

झारखंड भूमि सुधार अधिनियम 2000 की धारा 46 के तहत फर्जी दाखिल-खारिज को रद्द करने और अपराधी पर जुर्माना/कारावास का प्रावधान है। साथ ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (फर्जी दस्तावेज बनाना), और 468 (फर्जीवाड़े का इरादा) के तहत राज शेखर जैसे दलालों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हो सकता है।

निबंधन अधिनियम 1908 की धारा 82 के अनुसार अवैध रजिस्ट्री को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। लेकिन प्रशासन की सुस्ती ने इन प्रावधानों को ‘कागजी शेर’ बना दिया। क्या कांके अंचल कार्यालय में कोई आंतरिक जांच हुई? या यह ‘दलाल-प्रशासन’ गठजोड़ का नया रूप है, जहां डिजिटल रिकॉर्ड्स को ही हैक कर लिया जाता है?

रांची जिला प्रशासन की यह गैरजिम्मेदार मानसिकता शर्मनाक है। जिला आयुक्त मंजूनाथ भजयंत्री, जो जन-कल्याण’ का दावा करते हैं, उनके कार्यालय से शिकायतें महज ‘फॉरवर्ड’ हो रही हैं बिना फॉलो-अप के। अपर समाहर्ता का ‘जवाब तलब’ पत्र तो जारी हो गया, लेकिन कांके सीओ की चुप्पी क्या दर्शाती है? मिलीभगत? या महज ‘बाबू संस्कृति’ जहां फाइलें जन्म-मृत्यु चक्र पूरी करती रहें?

इस पीड़ित जैसे आम नागरिक, जो मीडिया के माध्यम से आवाज उठा रहे हैं, उसे दफ्तरों के चक्कर लगवाकर थकाया जा रहा है। यह लापरवाही नहीं, बल्कि संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन है। अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार जमीन के कब्जे से जुड़ा है। अगर यही ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ है तो गरीब लाचार कैसे बचें? प्रशासन जागे, वरना कोर्ट की दहलीज पर यह मामला पहुंचेगा और तब ‘सॉरी’ कहने से भी काम नहीं चलेगा।

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