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झारखंड में RTI कानून बेअसर, कांके CO ने सूचना नहीं दी, रांची SDO बना कागज का पुतला, आयोग लापता!

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को लोकतंत्र की रीढ़ कहा जाता है, लेकिन झारखंड में यह कानून बीते चार वर्षों से लगभग निष्प्रभावी होता दिख रहा है। कांके अंचल कार्यालय से जुड़ा ताज़ा मामला न केवल प्रशासनिक उदासीनता उजागर करता है, बल्कि राज्य में राज्य सूचना आयोग के गठन न होने की गंभीर संवैधानिक चूक को भी सामने लाता है।

दाखिल आरटीआई आवेदन में खाता संख्या–17, आरएस प्लॉट संख्या–1335, मौजा–नेवरी, थाना–कांके, जिला–रांची से संबंधित भूमि के दाखिल–खारिज, जमाबंदी, भौतिक सत्यापन और सबसे अहम 25 डिसमिल भूमि पर 37 डिसमिल की रसीद कटने जैसी गंभीर अनियमितताओं पर सूचना मांगी गई थी।

कानून की धारा 7(1) के तहत 30 दिनों में सूचना देना अनिवार्य है, लेकिन जन सूचना अधिकारी सह कांके अंचलाधिकारी अमित भगत ने समय-सीमा के भीतर कोई सूचना नहीं दी।

सूचना न मिलने पर मामला प्रथम अपील में गया। इसके बाद प्रथम अपीलीय पदाधिकारी सह रांची अनुमंडल पदाधिकारी (SDO) उत्कर्ष कुमार ने मामले की सुनवाई तय की।

संलग्न दस्तावेज़ों के अनुसार 10 जुलाई 2025, 28 अगस्त 2025, 02 सितंबर 2025, 20 सितंबर 2025 जैसे चार अलग-अलग तिथियों पर सुनवाई तय हुई। नोटिस जारी हुए। कक्ष संख्या–211 अनुमंडल कार्यालय सदर रांची में उपस्थित रहने के निर्देश दिए गए, लेकिन इसके बावजूद कांके सीओ ने न सूचना दी और न आदेशों का पालन किया।

रिकॉर्ड बताते हैं कि चार बार लिखित आदेश जारी हुए। प्रत्येक आदेश में सूचना देने का निर्देश था। इसके बावजूद सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई। यह स्थिति स्पष्ट रूप से RTI Act की अवहेलना और प्रशासनिक अनुशासनहीनता को दर्शाती है।

सबसे चौंकाने वाला तथ्य तब सामने आया जब प्रथम अपीलीय पदाधिकारी ने यह कहते हुए असमर्थता जता दी कि यदि कांके अंचलाधिकारी सूचना उपलब्ध नहीं कराते हैं तो मेरे पास उन्हें पत्र लिखने के अलावा कोई अधिकार नहीं है।

कानूनी जानकारों के अनुसार यह कथन स्वयं प्रथम अपीलीय तंत्र की विफलता को दर्शाता है, क्योंकि RTI Act की धारा 19 के तहत अपीलीय पदाधिकारी को प्रभावी हस्तक्षेप का दायित्व सौंपा गया है।

इस पूरे मामले को और गंभीर बनाता है यह तथ्य कि झारखंड में पिछले चार वर्षों से राज्य सूचना आयोग का गठन ही नहीं हुआ है। ऐसे में द्वितीय अपील का संवैधानिक अधिकार निष्प्रभावी हो गया है। दोषी जन सूचना अधिकारियों पर कार्रवाई का रास्ता बंद है। आम नागरिक न्याय के लिए भटकने को मजबूर हैं।

कानूनन द्वितीय अपील राज्य सूचना आयोग में की जानी चाहिए, लेकिन आयोग के अस्तित्व में न होने से RTI कानून कागज़ी अधिकार बनकर रह गया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि आयोग का गठन न होना संवैधानिक दायित्वों की अनदेखी है। यह स्थिति पारदर्शिता, जवाबदेही और भ्रष्टाचार नियंत्रण को सीधे प्रभावित करती है। इससे सरकारी अधिकारियों में दंड का भय समाप्त हो गया है।

कांके अंचल कार्यालय का यह मामला अब सिर्फ एक RTI विवाद नहीं रहा। यह झारखंड में RTI व्यवस्था के लगभग ध्वस्त हो जाने का प्रतीक बन चुका है,  जहां न सूचना मिलती है, न आदेश का पालन होता है और न ही अपील का प्रभावी मंच मौजूद है। अब यह मामला न्यायिक हस्तक्षेप और संवैधानिक जवाबदेही की मांग करता है।

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