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अबुआ राज में भूमि माफियाओं की चाँदी, कांके अंचल कार्यालय बना काला गढ़

रांची, 18 अक्टूबर 2025 (रांची दर्पण / मुकेश भारतीय)। झारखंड की राजधानी रांची में भूमि घोटालों की भयानक आंधी थमने का नाम नहीं ले रही! कांके अंचल कार्यालय से लेकर भूमि निबंधन (रजिस्ट्री) कार्यालय तक फैला भ्रष्टाचार का जहरीला जाल असल जमीन मालिकों की जिंदगी को नर्क बना रहा है।

भूमि माफियाओं का फर्जीवाड़े का खूंखार खेल इतना घिनौना है कि हजारों एकड़ जमीनें लुटेरों के हवाले हो रही हैं, जबकि भूमि उप समाहर्ता (DCLR), अपर समाहर्ता (भूमि राजस्व) और उपायुक्त (DC) कार्यालय की रहस्यमयी चुप्पी ने पूरे सिस्टम को लाशखोरों का अड्डा बना दिया है!

रांची दर्पण की साहसी जांच ने इस काले साम्राज्य को बेनकाब किया है। यह सिर्फ घोटाला नहीं, बल्कि एक खतरनाक साजिश है, जो असल जमीन मालिकों की हड्डियां चूस रही है। क्या यह भ्रष्टाचार की आग इतनी भयंकर है कि वे अपनी ही जमीन पर लाश बनकर गिर रहे हैं? क्या कांग्रेस-झामुमो की हेमंत राज में नौकरशाहों की गैंग बिल्कुल बेलगाम हो गई है। काली कमाई के चश्मे से उन्हें कुछ भी नहीं सूझ रहा है।

यह दिल दहला देने वाली कहानी उन लाखों असल जमीन मालिकों की है, जो अपनी खून-पसीने की कमाई वाली खरीदगी जमीन पर शांति से जी रहे थे, लेकिन अचानक फर्जी दाखिल-खारिज और जाली निबंधन की तलवार से उनका सब कुछ तबाह करने की शाजिस रच दी गई।

रांची दर्पण ने कांके अंचल के जंगलों और गांवों में घुसकर इस खौफनाक सच्चाई को उजागर किया, जहां सैकड़ों एकड़ भूमि को ‘जनरल’ जमीन बताकर लुटेरों के हवाले कर दिया गया। और असल जमीन मालिकों का हक छीनने का षडयंत्र रचा गया। यह आज भी बेखौफ जारी है। हालांकि यह पहले भी हो रहा था, लेकिन तथाकथित ‘हेमंत सरकार की अबुआ राज’ में यह खेल खौफनाक रुप ले चुका है। भू-माफियाओं की चौकड़ी और नौकरशाहों की गैंग का बड़ा भयानक चेहरा दिख रहा है।

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) की हालिया कई धमाकेदार छापेमारी से भी यह साबित हुआ है कि माफिया और अधिकारी मिलकर रिकॉर्ड ऑफ राइट्स में जहर घोल रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल कि क्यों डीसीएलआर कार्यालय में शिकायतें कब्र में दफन हो रही हैं? क्यों अपर समाहर्ता की जांच रिपोर्ट्स राक्षसी चुप्पी ओढ़े बैठी हैं? और उपायुक्त कार्यालय की रहस्यमयी उदासीनता क्या उच्च स्तर की खौफनाक साजिश का हिस्सा है?

भ्रष्टाचार का खूंखार जाल: कांके अंचल कार्यालय, लूट का काला किला

कांके अंचल कार्यालय को भूमि घोटालों का खौफनाक गढ़ कहें तो जरा भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां के अफसर और कर्मचारी कथित तौर पर माफियाओं के साथ मिलकर फर्जी दाखिल-खारिज का खतरनाक खेल खेल रहे हैं। जांच में दिल दहला देने वाला खुलासा हुआ कि म्यूटेशन रजिस्टर में हेराफेरी का बाजार गर्म है। पुराने रिकॉर्ड मिटाए जा रहे हैं, जाली रसीदें उगली जा रही हैं और झारभूमि पोर्टल पर क्षेत्रफल को जादू से बढ़ाकर दिखाया जा रहा है।

एक भयानक उदाहरण में मूल रैयत की 25 डिसमिल जमीन पर अचानक 37 डिसमिल की रसीदें कटने लगीं। यह गणितीय जादू नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का जहरीला चमत्कार है! ईडी और एसीबी की कई रिपोर्ट्स चीख-चीखकर बता रही हैं कि कांके अंचल में 200 एकड़ से अधिक जमीनें इस खौफनाक खेल की भेंट चढ़ चुकी है।

भूमि माफिया फर्जी दस्तावेजों की बाढ़ लाकर रैयतों को डुबो रहे हैं। कभी पुरानी रसीदों की जाली नकल से, कभी राक्षसी निबंधन से। यहां CNT Act, 1908 की धारा 46 और 49 का खुलेआम कत्ल हो रहा है। लेकिन कांके अंचल में भ्रष्टाचार का यह राक्षस इतना बेकाबू है कि असल जमीन मालिकों की चीखें सुनवाई के बजाय दबा दी जाती हैं।

लोग दहशत में कहते हैं कि अधिकारी घूस की लूट में डूबे हैं। हमारी जमीन पर महल और रिसॉर्ट उग रहे हैं और हम मौत के मुंह में धकेले जा रहे हैं! ED की छापेमारी में करोड़ों की काली कमाई जब्त हुई, जिसमें अंचल अधिकारियों की गंदी मिलीभगत साफ झलकी। या सीओ पर कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनकी सीधी पहुंच सीएम तक है और जब सैंया ही कोतवाल हो तो उन्हें कोई डर काहे का!

भूमि निबंधन कार्यालय: फर्जीवाड़े का खूनी मैदान!

भ्रष्टाचार का यह जहरीला जाल कांके अंचल से निकलकर भूमि निबंधन (रजिस्ट्री) कार्यालय तक फैल चुका है। यहां जाली दस्तावेजों पर रजिस्ट्री का खौफनाक नाच चल रहा है! असल जमीन मालिका हक लुटेरों के हवाले किया जा रहा है। भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 316(2), 336-339 और 61 के तहत यह धोखाधड़ी और साजिश का दिल दहला देने वाला अपराध है, लेकिन जांच एजेंसियां जैसे मौत की नींद सो रही हैं!

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि रजिस्ट्री अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी रजिस्ट्री और जाली रसीदों पर सौदों का बाजार गर्म है। मूल रैयतों को इस शाजिस का पता तब चलता है, जब उनकी जमीन पर लुटेरों की काली साया पड़ चुका होता है और वे तबाही के कगार पर मौत के मुहाने देख रहे होते हैं!

एक पीड़ित रैयत ने दहशत में नाम न छापने की शर्त पर चीखकर कहा कि हमारी जमीन पर जाली रजिस्ट्री हो गई! रजिस्ट्री कार्यालय में शिकायत की, लेकिन फाइलें कब्र में दफन! उस पर तुर्रा यह कि कांके अंचालाधिकारी ने बिना कोई पड़ताल किए जमाबंदी भी कर दी और रसीद भी काट दी। आखिर अंचलाधिकारी के पास ऐसा कौन सा ‘अलाउद्दीन का चिराग’ है कि वह 25 डिसमिल की प्लॉट को 37 डिसमिल बना दे? इस सवाल का जबाव उपायुक्त स्तर पर भी नहीं मिलता है।

दरअसल माफिया अधिकारियों को वहां घूस की माला पहनाकर सब सेटल कर लेते हैं। राज्य राजस्व विभाग के आंकड़े चीख रहे हैं कि 2024-25 में रांची जिले में 500 से ज्यादा म्यूटेशन अपील जाली दस्तावेजों से जुड़ी थीं। लेकिन सवाल उठता है कि अंचल कार्यालय से रजिस्ट्री कार्यालय की पारदर्शिता के दावे क्यों खोखले साबित हो रहे हैं? आखिर यह साजिश कितनी गहरी है?

असल जमीन हकदार की खौफनाक कराह और न्याय की राह में मौत के कांटे!

आम जमीन मालिक इस भ्रष्टाचार से खौफजदा शिकार हैं! सालों से निर्विवाद कब्जे वाली जमीन अचानक फर्जी दाखिल-खारिज की तलवार से कट जाती है। वे डीसीएलआर कोर्ट की चौखट पर जाते हैं, लेकिन वहां तारीख पर तारीख का खूंखार खेल चलता है। रैयतों को आर्थिक और मानसिक यातना की आग में झुलसना पड़ता है। Jharkhand Mutation Manual की धारा 4 समयबद्ध प्रक्रिया का वादा करती है, लेकिन यहां देरी की राक्षसी रणनीति से असल जमीन मालिक मौत के मुंह में धकेले जा रहे हैं।

एक रैयत की चीख सुनिए कि हमारी जमीन पर माफिया कब्जा कर लेते हैं और हम एएसएसपी या एसीबी में शिकायत करते हैं। लेकिन जांच मौत की तरह रुक जाती है! क्या यह सिस्टम जमीन मालिको को मारने के लिए बना है?” ईडी  की जांच से सनसनीखेज खुलासा कि कांके में 200 एकड़ जमीन लुटेरों की भेंट चढ़ चुकी है।फिर भी रैयतों की यह खौफनाक कराह कौन सुन रहा है? सिस्टम या साजिश?

अधिकारियों की रहस्यमयी उदासीनता और सिस्टम की गंदी सड़ांध उजागर!

सबसे दिल दहला देने वाली सच्चाई है भूमि उप समाहर्ता, अपर समाहर्ता (भूमि राजस्व) और उपायुक्त कार्यालय की यह रहस्यमयी चुप्पी! शिकायतें आती हैं, लेकिन कार्रवाई मौत की तरह गायब। डीसीएलआर कोर्ट में ex-parte आदेश का प्रावधान है, लेकिन लुटेरों की अनुपस्थिति पर भी तारीखें बांटी जा रही हैं। अपर समाहर्ता कार्यालय में जांच रिपोर्ट्स महीनों की मौत मरती हैं और उपायुक्त कार्यालय की सिफारिशें कागजी लाश बन जाती हैं।

इडी के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं कि झारभूमि पोर्टल ने पारदर्शिता का ढोंग रचा है। अधिकारियों की मिलीभगत से उसमें ही छेड़छाड़ कर दी जाती है। वहीं से खफनाक घोटालों का दौर जारी है! जांच से राक्षसी खुलासे हो सकते हैं। लेकिन समस्या यह है कि असल जांच करे या कराए कौन? यहां नेता, अफसर और माफिया सब एक ही काली टोपी पहन रखे हैं।

वे कहते हैं कि कांके अंचल में भ्रष्टाचार के खिलाफ खूंखार प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन सुधार की कोई किरण नहीं दिखा। जबकि ऐसे मामलों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक जेल जा चुके हैं। पूर्व रांची उपायुक्त छवि रंजन भी ऐसे ही मामलों में लंबे अरसे तक जेल में रहे हैं। फिर भी ऐसे मामलों में गंभीरता न बरतना एक दुःखद गंभीर पहलु माना ही जा सकता है। आखिर यह उदासीनता क्यों? क्या यह उच्च स्तर की खौफनाक साजिश का हिस्सा है, जहां असल जमीन मालिकों की मौत पर काला पैसा कमाया जा रहा है?

(नोट: यह रिपोर्ट उपलब्ध जांच रिपोर्ट्स, आधिकारिक आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है। रांची दर्पण निष्पक्ष पत्रकारिता का पालन करता है, लेकिन किसी भी भ्रष्ट पक्ष का समर्थन नहीं करता।)

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