
रांची दर्पण डेस्क। झारखंड के जलाशय और आर्द्रभूमि एक बार फिर प्रवासी पक्षियों के रंग-बिरंगे पंखों से सजने लगे हैं। यह न केवल प्रकृति प्रेमियों के लिए एक सुखद दृश्य है, बल्कि झारखंड के जलाशयों की सेहत और पारिस्थितिक संतुलन का भी सकारात्मक संकेत है।
हाल ही में हुए एशियन वाटर बर्ड सेंसेस (एडब्ल्यूसी) 2024 के तहत साहेबगंज के उधवा लेक और आसपास के वेटलैंड्स में 18,000 से अधिक पक्षियों की गणना की गई। इस सर्वेक्षण में 58 विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की मौजूदगी दर्ज की गई, जिनमें 22 प्रवासी प्रजातियां शामिल हैं। 15 साल बाद बैकल टील और ग्लॉसी आइबिस जैसे दुर्लभ पक्षियों ने इस क्षेत्र में अपनी वापसी की है।
यह सर्वेक्षण नियो ह्यूमन फाउंडेशन के अध्यक्ष और एडब्ल्यूसी के राज्य संयोजक डॉ. सत्य प्रकाश के नेतृत्व में संपन्न हुआ। इसमें साहेबगंज वन प्रमंडल के अधिकारियों, इंडियन बर्ड कंजरवेशन नेटवर्क (आइबीसीएन), जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआइ) के विशेषज्ञों और स्थानीय पक्षी प्रेमियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस संयुक्त प्रयास ने न केवल पक्षियों की गणना को विश्वसनीय बनाया, बल्कि क्षेत्र के जैव-विविधता संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई।
सर्वेक्षण के दौरान छह वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गई, जो झारखंड के वेटलैंड्स की जैविक समृद्धि को दर्शाती है। इनमें नियर थ्रेटेड (लगभग संकटग्रस्त)- दरटर, ओरिएंटल व्हाइट आइबिस, फेरुजिनस डक, वल्नरेबल (संकटग्रस्त)- लेसर एडजुटेंट, वूली-नेक्ड स्टॉर्क, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल शामिल हैं।
इसके अलावा उधवा लेक में पर्पल मूरहेन की बड़ी संख्या भी देखी गई, जो इस क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है। इन पक्षियों की मौजूदगी यह दर्शाती है कि झारखंड के जलाशय प्रवासी पक्षियों के लिए एक सुरक्षित और उपयुक्त आवास प्रदान कर रहे हैं।
सर्वेक्षण में उधवा लेक बर्ड सेंक्चुरी और आसपास के वेटलैंड्स में पक्षियों की गणना पाटौरा वेटलैंड: 2,673 पक्षी, बेहाले वेटलैंड: 9,868 पक्षी, पुरुलिया वेटलैंड: 5,468 पक्षी, मासकलाइया वेटलैंड (तालझारी प्रखंड): 335 पक्षी और 21 प्रजातियां रही। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि उधवा लेक और इसके आसपास के क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाना हैं।
स्थानीय बर्ड वॉचर और फोटोग्राफर राहुल सिंह का कहना है कि उधवा लेक जैसे आर्द्रभूमि क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल हैं। हालांकि, इन क्षेत्रों के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। प्रदूषण नियंत्रण, अवैध शिकार पर रोक और वेटलैंड्स का संरक्षण इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। इन प्राकृतिक आवासों को बचाने के लिए स्थानीय समुदाय, वन विभाग और पर्यावरण संगठनों को मिलकर काम करना होगा।
2009 के बाद बैकल टील और ग्लॉसी आइबिस जैसे पक्षियों की वापसी न केवल प्रकृति प्रेमियों के लिए उत्साहजनक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि झारखंड के जलाशय और आर्द्रभूमि अभी भी जैव-विविधता के संरक्षण में सक्षम हैं। यह सर्वेक्षण हमें यह याद दिलाता है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए हमें अपने पर्यावरण की रक्षा के प्रति और अधिक जागरूक और सक्रिय होने की आवश्यकता है।