विश्व खाद्य दिवस 2025: ICAR-IIAB की किसान गोष्ठी ने बिखेरी उम्मीदों की किरण

रांची, 16 अक्टूबर 2025 (रांची दर्पण संवाददाता)। दुनिया भर में भूखमरी और कुपोषण की चुनौतियों के बीच विश्व खाद्य दिवस हर साल एक नई उम्मीद जगाता है। इस वर्ष की थीम ‘Hand in Hand for Better Food and a Better Future’ अथार्थ ‘बेहतर भोजन और बेहतर भविष्य के लिए हाथ से हाथ मिलाकर’ न केवल एक नारा है, बल्कि एक वैश्विक आह्वान है। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्थापित यह दिवस FAO की 80वीं वर्षगांठ पर मनाया जा रहा है। यह हमें याद दिलाता है कि सतत कृषि प्रणाली के निर्माण में सभी हितधारकों सरकार, वैज्ञानिक, किसान और समाज की एकजुटता कितनी आवश्यक है।
झारखंड की राजधानी रांची में आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (ICAR-IIAB) ने इसी थीम को साकार करने वाला एक ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया। अनुसूचित जनजातीय किसानों के लिए विशेष रूप से समर्पित यह किसान गोष्ठी एवं इनपुट वितरण कार्यक्रम न केवल ज्ञान का प्रकाश बिखेरा, बल्कि ग्रामीण भारत के किसानों के चेहरों पर मुस्कान लाने वाली उम्मीदों की किरण भी बन गया।
झारखंड जैसे राज्य में, जहां 80 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है और अनुसूचित जनजातियां जंगलों और पहाड़ियों के बीच अपनी आजीविका जोड़ती हैं। ऐसे आयोजन वरदान साबित होते हैं। रांची रिंग रोड के निकट ICAR-IIAB का परिसर गढ़खटंगा में फैला हुआ है। जोकि आज सुबह से ही हरी-भरी हरियाली और किसानों के उत्साह से गूंज रहा था।
राज्य के विभिन्न जिलों रांची, गुमला, खूंटी, सिमडेगा और लोहरदगा से लगभग 1000 किसान, महिला कृषक समूहों की सदस्यें, युवा उद्यमी और वैज्ञानिक इकट्ठा हुए। इनमें से अधिकांश आदिवासी किसान थे। उनकी आंखों में वर्षों की मेहनत के साथ-साथ आधुनिक तकनीक की आस भी झलक रही थी।
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि झारखंड सरकार की कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि यह थीम हमें सिखाती है कि अकेले कोई लड़ाई नहीं जीती जा सकती। जब किसान का हाथ वैज्ञानिक के हाथ में मिलता है और सरकार का समर्थन साथ होता है, तभी हमारा झारखंड हमारा भारत खाद्य सुरक्षित और समृद्ध बन सकता है।
श्रीमती तिर्की खुद आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और मांडर विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी हैं। उन्होंने अपने संबोधन में भावुक होकर कहा कि ICAR-IIAB जैसे संस्थान किसानों के लिए ‘ज्ञान का खजाना’ हैं।
उन्होंने हाल ही में राज्य में महुआ उत्पादकों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा का जिक्र करते हुए जोर दिया कि राज्य सरकार छोटे तालाबों के जीर्णोद्धार से लेकर उच्च तकनीकी बागवानी तक हर कदम पर किसानों के साथ है।
उन्होंने अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि हमारी योजनाएं कागजों तक सीमित नहीं रहेंगी। प्रत्येक जिले में कृषि अधिकारी अब ग्राउंड लेवल पर जाकर लाभार्थियों तक पहुंचेंगे।
उनकी बातें सुनकर सभा में मौजूद महिलाएं, जो प्रायः खेती के बोझ तले दबी रहती हैं, उनकी तालियों से गूंज उठीं। एक महिला किसान रीता मुर्मू ने बाद में बताया कि मंत्री जी की बातें सुनकर लगता है कि अब हमारी आवाज सुनी जा रही है। ICAR-IIAB ने हमें गुणवत्तापूर्ण बीज दिए हैं, जो हमारी फसल को दोगुना कर देंगे।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त सचिव गोपाल तिवारी ने जैव प्रौद्योगिकी के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि झारखंड की मिट्टी में छिपी जैव विविधता को अगर हम आधुनिक विज्ञान से जोड़ दें तो यह राज्य खाद्य उत्पादन में क्रांति ला सकता है। ICAR-IIAB के निदेशक डॉ. सुजय रक्षित और उनकी टीम के प्रयास सराहनीय हैं।
राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के फेलो और मक्का, बाजरा तथा दालों की प्रजनन के विशेषज्ञ डॉ. रक्षित ने बताया कि संस्थान न केवल अनुसंधान कर रहा है, बल्कि किसानों तक पहुंचाने के लिए ‘फार्मर फर्स्ट’ प्रोजेक्ट के तहत कार्यशालाएं चला रहा है। प्रत्येक किसान खाद्य सुरक्षा का प्रहरी है। हमारा लक्ष्य उन्हें तकनीकी रूप से सशक्त बनाना है, ताकि जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से वे न घबराएं।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) के कुलपति डॉ. एस.सी. दुबे ने अपने संबोधन में विज्ञान की भूमिका को रेखांकित किया। डॉ. दुबे, जो ICAR के पूर्व सहायक महानिदेशक (प्लांट प्रोटेक्शन) रह चुके हैं और पादप रोग विज्ञान में विशेषज्ञ हैं, उन्होंने कहा कि किसानों को फसलों में विविधता लानी होगी। एक ही फसल पर निर्भरता आर्थिक संकट को न्योता देती है। BAU और ICAR-IIAB मिलकर किसानों को प्रशिक्षण देंगे।
उन्होंने हाल ही में विश्वविद्यालय की स्थापना दिवस पर राज्यपाल से की गई चर्चा का जिक्र करते हुए आश्वासन दिया कि रिक्त पदों पर जल्द भर्ती होगी, जिससे किसानों को बेहतर सहायता मिलेगी।
गोष्ठी का मुख्य आकर्षण वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता से भरी चर्चाएं रहीं। ICAR-IIAB के विशेषज्ञों ने रबी फसलों दलहन और तिलहन की उन्नत तकनीकों पर विस्तार से बताया। प्राकृतिक खेती को ‘प्रकृति के साथ संतुलन का मार्ग’ बताते हुए उन्होंने रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में जैव उर्वरकों का महत्व समझाया।
झारखंड में बागवानी की अपार संभावनाओं पर एक सत्र में फलों और सब्जियों की उच्च उपज वाली किस्मों का प्रदर्शन किया गया। पशुपालन और मत्स्य पालन पर फोकस करते हुए विशेषज्ञों ने बताया कि बतख और पोल्ट्री पालन से ग्रामीण महिलाओं की आय दोगुनी हो सकती है।
राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली (NPM) और किसान शिकायत निवारण पोर्टल की जानकारी ने किसानों को सशक्त महसूस कराया। अंत में भारत और झारखंड की प्रमुख कृषि योजनाओं जैसे पीएम किसान सम्मान निधि, महुआ MSP और तालाब जीर्णोद्धार पर चर्चा हुई।
इन चर्चाओं के बीच कार्यक्रम का सबसे भावुक पल था इनपुट वितरण। अनुसूचित जनजातीय किसानों को उन्नत बीज, जैव उर्वरक, पौध सामग्री और अन्य कृषि इनपुट्स वितरित किए गए।
एक बुजुर्ग किसान, रामेश्वर हेम्ब्रम ने कहा कि ये बीज मेरे खेत को नया जीवन देंगे। पहले सूखा हमारी कमर तोड़ देता था, अब विज्ञान हमारा साथी बनेगा। दो महिला किसानों सुनीता कुमारी और मीना सोरें ने मंच पर अपनी कहानियां साझा कीं। सुनीता ने बताया कि ICAR-IIAB के टीकाकरण और वैज्ञानिक पद्धतियों से उनकी दाल की फसल 30 प्रतिशत बढ़ गई। मीना ने पोल्ट्री पालन से मिले लाभ का जिक्र किया कि अब मेरी बेटी स्कूल जा पाती है।
कार्यक्रम का समापन डॉ. बिजयपाल भड़ाना के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ, जिन्होंने सभी अतिथियों, वैज्ञानिकों, कर्मचारियों और किसानों का आभार माना। यह आयोजन केवल एक दिवसीय कार्यक्रम नहीं था, बल्कि ‘हाथ से हाथ मिलाकर’ की भावना को मजबूत करने वाला एक मील का पत्थर साबित हुआ।
जैसा कि FAO के महानिदेशक क्वू डोंग्यू ने कहा है कि आज के कार्य कल के भविष्य को आकार देंगे। अधिक उत्पादन के साथ कम संसाधनों का उपयोग करें। ICAR-IIAB का यह प्रयास झारखंड के किसानों को न केवल बेहतर भोजन, बल्कि एक समृद्ध और आत्मनिर्भर भविष्य की ओर ले जा रहा है। विश्व खाद्य दिवस की यह किरण उम्मीद है कि पूरे देश को रोशन करेगी।