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RTI का तमाशा: DC साहब, आखिर किस मद में चूर है कांके CO?

रांची, 19 अक्टूबर 2025 (रांची दर्पण)। झारखंड की राजधानी रांची में सूचना का अधिकार (RTI) कानून की धज्जियां उड़ाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। एक तरफ सत्ता के गलियारों में पारदर्शिता और जवाबदेही का दावा किया जाता है, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है।

अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) एवं प्रथम अपीलीय प्राधिकारी उत्कर्ष ने कांके अंचलाधिकारी (CO) अमित भगत को RTI से जुड़ी महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए निर्धारित अवधि में चार पत्र लिखे, लेकिन भगत न केवल उपस्थिति दर्ज कराने से कतरा रहे हैं, बल्कि किसी भी पत्र का जवाब देना तक मुनासिब नहीं समझ रहे।

यह मामला न केवल RTI कार्यकर्ताओं के बीच आक्रोश पैदा कर रहा है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल भी खड़े कर रहा है। आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? क्या सत्ता के ‘उच्च रसूखदारों’ को RTI के दायरे से बाहर माना जाए?

दस्तावेजों का अध्ययन करने पर सामने आया है कि यह मामला अप्रैल 2025 से चल रहा है। एसडीओ उत्कर्ष ने 17 अप्रैल 2025 को एक विस्तृत पत्र (संख्या 835219) जारी किया, जिसमें कांके अंचल के अंतर्गत RTI आवेदन नंबर 17/1 के तहत मांगी गई सूचनाओं को उपलब्ध कराने का स्पष्ट निर्देश दिया गया। इस पत्र में कहा गया कि आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी, जिसमें अंचल के विभिन्न कार्यों से जुड़े दस्तावेज शामिल हैं, उसे तत्काल उपलब्ध कराया जाए।

लेकिन कांके CO अमित भगत ने इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद 16 जून 2025 को एक और पत्र (संख्या 835220) भेजा गया, जिसमें फिर से सूचना उपलब्ध कराने और अपीलीय प्रक्रिया में सहयोग करने का अनुरोध किया गया।

10 अगस्त 2025 को जारी तीसरे पत्र में एसडीओ ने सख्त लहजे में लिखा, “यदि सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो उचित कार्रवाई की जाएगी।” अंत में 16 अक्टूबर 2025 को चौथा पत्र (संख्या 835221) भेजा गया, लेकिन स्थिति जस की तस रही।

दस्तावेजों में दर्ज तिथियां (14/08/25, 16/10/25) और पृष्ठ संख्या (279, 219, 21, 207) पर चिह्नित पत्रों में एसडीओ उत्कर्ष के हस्ताक्षर स्पष्ट हैं। प्रत्येक पत्र में प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के रूप में सुनवाई की तिथियां तय की गईं और कांके अंचल को सूचना देने का आदेश दिया गया। लेकिन न तो CO अमित भगत सुनवाई में उपस्थित हुए, न सूचनाएं उपलब्ध कराईं और न ही किसी पत्र का जवाब देना जरूरी समझा।

RTI आवेदक ने एक्सपर्ट मीडिया न्यूज से बातचीत में अपनी निराशा जाहिर करते हुए कहा, “मैंने अप्रैल से सूचना मांगी थी। एसडीओ ने सही कदम उठाया, लेकिन अमित भगत का रवैया हैरान करने वाला है। न पत्र का जवाब, न कोई कार्रवाई। यह पारदर्शिता का मजाक है। इस देरी से भ्रष्टाचार के आरोप और गहरा रहे हैं।”

RTI कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मामला झारखंड में RTI कानून के कार्यान्वयन की कमजोरियों को उजागर करता है। आंकड़ों के अनुसार 2024-25 में रांची जिले में 65% RTI आवेदनों पर समयसीमा के भीतर जवाब नहीं दिया गया। कई मामलों में यदि जवाब दिया भी जाता है तो वह अपूर्ण या बेसिर-पैर का होता है, जिससे आवेदक को बार-बार चक्कर काटने पड़ते हैं।

RTI के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि निचले स्तर के अधिकारी अक्सर दबाव में सूचनाएं छिपाते हैं, खासकर जब बात अनियमितताओं या भ्रष्टाचार से जुड़ी हो। एक पूर्व RTI आयुक्त ने कहा, “यह न केवल कानूनी उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है। सरकार को ऐसे मामलों में सख्ती बरतनी चाहिए।”

प्रशासनिक हलकों में भी इस मामले पर चर्चा गर्म है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया, “अमित भगत जैसे अधिकारियों की उदासीनता से पूरा सिस्टम प्रभावित होता है। एसडीओ उत्कर्ष ने अपना कर्तव्य निभाया, लेकिन अब उच्च स्तर से हस्तक्षेप जरूरी है।”

फिलहाल, एसडीओ कार्यालय से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं मिली है। खुद एसडीओ उत्कर्ष फोन उठाने से कतराते नजर आ रहे हैं। उनका अगला कदम क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। दूसरी ओर कांके CO अमित भगत की चुप्पी और उदासीनता ने न केवल RTI कानून की अवमानना को उजागर किया है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही पर भी सवाल उठाए हैं।

RTI कानून 2005 के तहत सूचना 30 दिनों के भीतर देना अनिवार्य है। लेकिन जमीनी स्तर पर यह नियम सिर्फ कागजों तक सीमित रह गया है। कांके जैसे मामलों में जहां एक वरिष्ठ अधिकारी बार-बार आदेश दे रहा है और फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही, यह सवाल उठता है कि क्या कुछ अधिकारियों को कानून से ऊपर समझा जा रहा है?

रांची में यह मामला केवल एक RTI आवेदन की अनदेखी तक सीमित नहीं है। यह प्रशासनिक अक्षमता, जवाबदेही की कमी और सत्ता के दुरुपयोग का प्रतीक बन चुका है। RTI कार्यकर्ता और आम नागरिक अब उच्च अधिकारियों और सरकार से कार्रवाई की उम्मीद कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह सिलसिला अनिश्चितकाल तक चलेगा या फिर पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाएगा?

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