Home धर्म-कर्म रांची जगन्नाथ रथयात्रा: आस्था, संस्कृति और सामाजिक सद्भाव का अनुपम संगम

रांची जगन्नाथ रथयात्रा: आस्था, संस्कृति और सामाजिक सद्भाव का अनुपम संगम

Ranchi Jagannath Rath Yatra: A unique confluence of faith, culture and social harmony
Ranchi Jagannath Rath Yatra: A unique confluence of faith, culture and social harmony

रांची दर्पण डेस्क। रांची जगन्नाथ रथयात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। पुरी के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा की तर्ज पर आयोजित यह यात्रा हर साल आषाढ़ मास (जून-जुलाई) में रांची के ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर से शुरू होती है।

यह उत्सव भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के विग्रहों को भव्य रथों पर सजाकर मौसीबाड़ी (गुंडिचा मंदिर) तक ले जाने का एक पवित्र अवसर है, जो नौ दिनों तक चलता है।

328 साल पुरानी आस्था का केंद्रः रांची का जगन्नाथ मंदिर, जिसे 1691 में नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने बनवाया था, पुरी के जगन्नाथ मंदिर की छोटी प्रतिकृति के रूप में स्थापित किया गया था। यह मंदिर रांची के अलबर्ट एक्का चौक से लगभग 10 किलोमीटर दूर 80-90 मीटर ऊंची एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जो शहर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। 328 साल से भी अधिक समय से यह मंदिर आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है, और इसकी रथयात्रा की परंपरा भी उतनी ही प्राचीन है।

सर्वधर्म समभाव का प्रतीकः रांची की रथयात्रा की सबसे अनूठी विशेषता इसका सर्वधर्म समभाव है। ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने इस उत्सव को सभी जातियों और धर्मों को जोड़ने का माध्यम बनाया था। यह परंपरा आज भी जीवित है। ऐतिहासिक रूप से इस यात्रा में विभिन्न समुदायों का योगदान रहा है।

घासी समुदाय फूलों की व्यवस्था करता था। उरांव समुदाय घंटियाँ प्रदान करता था। मुस्लिम समुदाय मंदिर की पहरेदारी करता था। राजवर समुदाय रथ को सजाने, कुम्हार मिट्टी के बर्तन देने, और बढ़ई व लोहार रथ निर्माण में योगदान देते थे। यह सामाजिक एकता का अनुपम उदाहरण है, जो रांची की रथयात्रा को अन्य रथयात्राओं से अलग बनाता है।

महिलाओं की सक्रिय भागीदारीः पुरी की रथयात्रा में जहाँ कुछ परंपराएँ पुरुष-प्रधान हैं, वहीं रांची की रथयात्रा में महिलाएँ भी रथ खींचने और पूजा-अर्चना में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। यह समावेशी दृष्टिकोण उत्सव को और भी खास बनाता है।

ऐतिहासिक और पौराणिक महत्वः रथयात्रा की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है, और इसका उल्लेख स्कंद पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की थी। जिसके परिणामस्वरूप भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी (गुंडिचा मंदिर) जाते हैं। जहाँ वे सात दिनों तक विश्राम करते हैं।

रांची में यह परंपरा नागवंशी राजाओं द्वारा शुरू की गई थी, जो भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे। यह यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह स्थानीय मुंडा और उरांव जैसे आदिवासी समुदायों को भी आकर्षित करती है, जो इसमें उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।

1857 की क्रांति के दौरान, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था, जिसके परिणामस्वरूप मंदिर की 84 में से तीन गाँवों की जमीन जब्त कर ली गई थी। हालांकि मंदिर के मुख्य पुजारी बैकुंठ नाथ तिवारी की अपील पर ब्रिटिश सरकार ने जगन्नाथपुर गाँव की 859 एकड़ जमीन मंदिर को वापस कर दी थी। वर्तमान में मंदिर के पास केवल 41 एकड़ जमीन शेष है।

रथ निर्माण और सांस्कृतिक वैभवः रथयात्रा का रथ स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाया जाता है, जो लकड़ी और धातु का उपयोग करके इसे भव्य रूप देते हैं। रथ की सजावट में पारंपरिक चित्रकारी और शिल्पकारी की झलक देखने को मिलती है। यात्रा के दौरान भक्ति भजनों, ढोल-नगाड़ों, और स्थानीय लोक नृत्यों का आयोजन होता है, जो उत्सव को और रंगीन बनाता है।

मेला और सामुदायिक समारोहः रथयात्रा के दौरान आयोजित मेला स्थानीय कला, संस्कृति, और व्यंजनों को बढ़ावा देता है। डोकरा कला, मुंडारी और नागपुरी संस्कृति की झलक इस मेले में देखने को मिलती है। भक्तों के बीच भोजन वितरण और सामुदायिक समारोह इस उत्सव को और भी जीवंत बनाते हैं।

रथयात्रा का मार्गः यात्रा जगन्नाथपुर मंदिर से शुरू होकर पास के मौसीबाड़ी (गुंडिचा मंदिर) तक जाती है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा नौ दिनों तक मौसीबाड़ी में विराजमान रहते हैं। जिसके बाद बाहुड़ा यात्रा के दौरान वे वापस मुख्य मंदिर लौटते हैं।

रथयात्रा का आध्यात्मिक महत्वः रथयात्रा का पौराणिक महत्व पापों के नाश, मोक्ष की प्राप्ति, और आत्मा-परमात्मा के मिलन से जुड़ा है। रांची में यह उत्सव हर साल लाखों लोगों को एक साथ लाता है, जो भगवान जगन्नाथ के दर्शन और रथ खींचने के पुण्य कार्य में भाग लेते हैं। यह उत्सव रांची की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को और भी मजबूत करता है।

रांची की जगन्नाथ रथयात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सामाजिक एकता, सांस्कृतिक वैभव, और आध्यात्मिकता का एक अनुपम संगम है। यह उत्सव रांची के लोगों के लिए एकता, भक्ति और उत्साह का प्रतीक है, जो इसे झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग बनाता है।

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