
रांची दर्पण डेस्क। झारखंड की राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर हाईकोर्ट की तलवार चमकी है। विधायक निधि (एमएलए फंड) के कथित दुरुपयोग के आरोपों से सजा पाने की उम्मीद में दाखिल जनहित याचिका उल्टी पड़ गई। हाईकोर्ट ने न सिर्फ याचिका को सिरे से खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता पर दो लाख रुपये का भारी-भरकम जुर्माना ठोंक दिया।
अदालत की यह सख्ती न सिर्फ फंड के दुरुपयोग के आरोपों पर सवाल खड़े करती है, बल्कि जनहित के नाम पर निजी और राजनीतिक दुश्मनी सुलझाने की कोशिशों को भी आईना दिखाती है। क्या यह मामला झारखंड की विधायी निधि व्यवस्था की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है या फिर सिर्फ एक राजनीतिक साजिश का पर्दाफाश? आइए, इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।
झारखंड हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने इस मामले पर विस्तृत सुनवाई की। याचिकाकर्ता बिनोद चौधरी ने विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी पर गंभीर आरोप लगाए थे।
उनका दावा था कि चंद्रवंशी ने अपने एमएलए फंड से करीब तीन करोड़ रुपये का गैर-कानूनी आवंटन किया है। इसमें निजी ट्रस्टों और संस्थाओं को धन दिलवाने का इल्जाम लगाया गया, जो एमएलए फंड के नियमों के स्पष्ट उल्लंघन के रूप में देखा जाता है।
नियमों के अनुसार विधायक निधि का उपयोग केवल सरकारी योजनाओं, सामुदायिक विकास और सार्वजनिक हित के कार्यों के लिए ही किया जा सकता है। निजी संस्थाओं को लाभ पहुंचाना वर्जित है।
याचिका में चौधरी ने न सिर्फ विधायक के खिलाफ जांच की मांग की थी, बल्कि संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई का दबाव बनाया था। उन्होंने खुद के लिए संरक्षण की भी गुहार लगाई, जो अदालत को संदेहास्पद लगा। सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता के दावों की परतें खोलीं।
मुख्य न्यायाधीश चौहान ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि यह याचिका जनहित के नाम पर दाखिल की गई है, लेकिन वास्तव में यह याचिकाकर्ता की निजी और राजनीतिक दुश्मनी को निपटाने का माध्यम मात्र है।
अदालत ने पाया कि चौधरी ने याचिका दायर करते समय अपने खिलाफ एक लंबित आपराधिक मामले का जिक्र छिपा लिया था। हालांकि बाद में उन्हें उस मामले में बरी कर दिया गया, लेकिन यह छिपाव अदालत के लिए पर्याप्त था ताकि याचिका को दुरुपयोग का ठहराया जाए।
अदालत का सबसे कड़ा फैसला जुर्माने का था। याचिकाकर्ता बिनोद चौधरी को दो लाख रुपये का जुर्माना भरना होगा। इस राशि का बंटवारा भी सोच-समझकर किया गया है। एक लाख रुपये विश्रामपुर विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी को हर्जाने के रूप में दिए जाएंगे, जबकि बाकी एक लाख रुपये हाईकोर्ट के अधिवक्ता क्लर्क कल्याण निधि में जमा होंगे।
यह फैसला न सिर्फ याचिकाकर्ता को सबक सिखाने का माध्यम बनेगा, बल्कि न्यायिक संसाधनों के दुरुपयोग पर भी अंकुश लगाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में जुर्माना बढ़ाना जरूरी है, ताकि लोग जनहित याचिकाओं का राजनीतिक हथियार न बनाएं।
झारखंड में एमएलए फंड हमेशा से विवादों का केंद्र रहा है। हर विधायक को सालाना करोड़ों रुपये की निधि मिलती है, जिसका उपयोग क्षेत्रीय विकास के लिए किया जाता है। लेकिन अक्सर आरोप लगते हैं कि यह फंड निजी लाभ या पक्षपातपूर्ण कार्यों में खर्च हो जाता है। विश्रामपुर जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है, एमएलए फंड की सही दिशा ही विकास की कुंजी हो सकती है।
चौधरी के आरोपों ने एक बार फिर इस सिस्टम की कमजोरियों को उजागर किया, लेकिन अदालत ने इसे व्यक्तिगत रंजिश का ठहराया। विधायक चंद्रवंशी ने मामले पर टिप्पणी से इंकार कर दिया, लेकिन उनके समर्थक इसे राजनीतिक साजिश बता रहे हैं। क्या यह मामला एमएलए फंड पर व्यापक जांच का संकेत देता है? राज्य सरकार की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
यह फैसला झारखंड की राजनीति में भूचाल ला सकता है। एक ओर जहां याचिकाकर्ता चौधरी को नुकसान हुआ है, वहीं विधायक चंद्रवंशी के लिए यह नैतिक जीत है। लेकिन सवाल यह उठता है कि असली हित किसका? जनता का, जो एमएलए फंड से सड़क, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं की उम्मीद करती है? अदालत की यह टिप्पणी कि जनहित के बजाय निजी दुश्मनी राजनीतिक दलों को सोचने पर मजबूर कर देगी। भविष्य में ऐसी याचिकाओं पर सतर्कता बरतनी होगी, वरना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग बढ़ता जाएगा।
- रांची रिम्स की जमीन बचाने की कवायद शुरू, प्रबंधन कराएगा बाउंड्री वॉल
- कांके डैम की सीमांकन से भू-माफिया-अतिक्रमणकारियों में हड़कंप