Home समस्या जन शिकायत-दरबार या छलावा? रांची जिला प्रशासन तंत्र की हालत देखिए

जन शिकायत-दरबार या छलावा? रांची जिला प्रशासन तंत्र की हालत देखिए

Public Grievance Court or Fraud? See the actions of the Ranchi district administration.

रांची दर्पण डेस्क। रांची उपायुक्त मंजू भजंत्री को दिए गए एक शिकायत ने जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिकायतकर्ता ने उपायुक्त को एक विस्तृत शिकायत सौंपी। उपायुक्त कार्यालय ने मामले को गंभीर मानते हुए उसे जन शिकायत कोषांग को भेजा। जन शिकायत कोषांग ने आगे इसे अपर समाहर्ता (राजस्व) को प्रेषित किया। अपर समाहर्ता ने कांके अंचलाधिकारी को मामले की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश भी दिया।

लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने जन शिकायत प्रणाली की हकीकत खोलकर रख दी। कांके अंचलाधिकारी ने करीब चार माह बाद तक न तो जांच रिपोर्ट सौंपी और न ही कोई जवाब दिया। शिकायत महीनों से लंबित है, लेकिन अंचलाधिकारी की चुप्पी ने पूरे तंत्र की जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

जब शिकायतकर्ता ने उपायुक्त कार्यालय से मामले पर हुई कार्रवाई की जानकारी चाही तो उसे अपर समहर्ता कार्यालय भेज दिया गया। वहां से फिर जन शिकायत भेज कोषांग जाकर जानकारी लेने को कहा गया। जन शिकायत कोषांग से मामले की स्थिति जाननी चाही तो प्रभारी अधिकारी ने उन्हें उल्टा कांके अंचलाधिकारी से ही संपर्क करने की सलाह दे दी।

यानी जिस अधिकारी पर लापरवाही, मिलीभगत और भ्रष्ट आचरण का आरोप है, उसी से जाकर जवाब मांगने की बात कही गई। जैसे कोई थानेदार चोरी की शिकायत करने वाले को कहे- ‘जाकर चोर से ही मिल लो’

ऐसे में सवाल उठना लाजमि है कि जिला प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे जन शिकायत कोषांग और जनता दरबार जैसे मंच जनता की समस्याओं का समाधान करने के लिए बने हैं या फिर केवल सरकार की छवि सुधारने का एक दिखावटी माध्यम हैं?

क्या अंचलाधिकारी जैसे अधिकारी उच्चाधिकारियों के आदेशों की भी अनदेखी कर सकते हैं? अगर जन शिकायत प्रणाली में ही शिकायतें दबा दी जाएं तो आम जनता के पास न्याय की उम्मीद का कौन सा दरवाजा खुलेगा? क्या यह सरकारी ढांचे में व्याप्त जवाबदेही की कमी का खुला सबूत नहीं है?

शिकायत से संबंधित दस्तावेज़ और ई-मेल पत्राचार स्पष्ट करते हैं कि आदेश की अवहेलना सीधे कांके अंचलाधिकारी द्वारा की गई। संबंधित फाइल  में यह पूरी प्रक्रिया दर्ज है, जिसमें अपर समाहर्ता द्वारा आदेश दिए जाने के बावजूद कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई।

यह मामला अब सिर्फ एक शिकायत का नहीं रहा, बल्कि पूरे जन शिकायत निवारण तंत्र पर प्रश्नचिह्न है। जनता अब सरकार और जिला प्रशासन से सीधा सवाल है कि आखिर शिकायतों पर समयबद्ध कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? आदेशों का पालन न करने वाले अधिकारियों पर कब और क्या कार्रवाई होगी? क्या जनता दरबार और जन शिकायत महज पीआर मीडियाई मंच हैं या फिर वास्तव में जनता को न्याय दिलाने का माध्यम?

फेसबुक और एक्स (पूर्व ट्वीटर) पर चलने वाली सरकार और जिला प्रशासन को इस पर स्पष्ट और ठोस जवाब देनी चाहिए। क्योंकि अगर जवाबदेही तय नहीं हुई तो ऐसे मामले जनता के भरोसे को और खोखला कर देंगे। वहीं श्री हेमंत सोरेन की कांग्रेसयुक्त सरकार बनने के बाद एक उम्मीद बनी थी कि अब उनकी समस्याएं सुनी जाएगी, लेकिन अब उसकी लौ बुझती दिख रही है?

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