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कांके CO कार्यालय में फर्जी दाखिल-खारिज का खुला खेल, रांची DC की भी नहीं सुनते!

कांके (रांची दर्पण)। रांची जिले के कांके अंचल कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार और अधिकारियों की मनमानी ने एक बार फिर सुर्खियां बटोर ली हैं। यहां पदस्थ कर्मियों द्वारा कथित तौर पर फर्जी डीड के आधार पर अवैध दाखिल-खारिज कर रसीद जारी करने का सनसनीखेज मामला सामने आया है।

Open game of fake mutation in Kanke zone office
Open game of fake mutation in Kanke zone office, they don’t even listen to Ranchi Deputy Commissioner!

एक महिला रैयत की कायमी भूमि के साथ हुई इस छेड़छाड़ की शिकायत रांची उपायुक्त तक पहुंच चुकी है, लेकिन दो माह बीत जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि सवाल उठाती है कि आम आदमी अपनी फरियाद लेकर कहां जाए, जब सिस्टम ही उदासीन हो?

मामला रांची के ओरमांझी निवासी श्रीमती आशा कुमारी का है, जिनकी कायमी रैयती भूमि पर अज्ञात लोगों ने फर्जी डीड बनाकर कब्जा करने की कोशिश की। आशा कुमारी ने बताया कि उनकी 25 डिसमिल भूमि को फर्जी तरीके से 37 डिसमिल दिखाकर दाखिल-खारिज कर रसीद जारी कर दी गई।

इस धोखाधड़ी की जानकारी मिलते ही उन्होंने रांची उपायुक्त को आवेदन देकर शिकायत दर्ज कराई। उनके आवेदन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर उनकी जमीन के साथ छेड़छाड़ की गई है, जो कानूनन अपराध है।

उपायुक्त कार्यालय ने इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए इसे कांके अंचल अधिकारी को जांच और कार्रवाई के लिए भेजा। रांची अपर समाहर्ता ने 19 जून 2025 को जारी पत्र (पत्रांक 3079) में साफ निर्देश दिए थे कि कांके अंचल अधिकारी इस मामले में नियमों के अनुसार त्वरित कार्रवाई करें और प्रभारी पदाधिकारी जन शिकायत कोषांग रांची को अविलंब रिपोर्ट सौंपें।

साथ ही अपर समाहर्ता को भी सूचना देने का आदेश था। लेकिन आश्चर्य की बात है कि दो माह से अधिक समय बीत चुका है, और न तो कोई जांच हुई, न कार्रवाई और न ही कोई जवाब आया। यह स्थिति प्रशासनिक ढिलाई का जीता-जागता उदाहरण है, जो पीड़ितों को और अधिक निराशा की ओर धकेल रही है।

पीड़ित आशा कुमारी की मानें तो यह घटना उनके लिए सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि मानसिक प्रताड़ना भी साबित हो रही है। उन्होंने कहा, “मैं कई बार अंचल कार्यालय से लेकर उपायुक्त कार्यालय तक दौड़ चुकी हूं। हर बार वादा किया जाता है, लेकिन कुछ नहीं होता। मेरी जमीन मेरी आजीविका का स्रोत है, और इस फर्जीवाड़े ने मुझे बर्बाद कर दिया है। अब मैं थक चुकी हूं, लेकिन हार नहीं मानूंगी।” उनकी यह गुहार सुनकर लगता है कि सिस्टम में कहीं न कहीं बड़ी खामी है, जहां आम आदमी की आवाज दब जाती है।

इस मामले की गहराई समझने के लिए हमने भूमि मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता बी.एन. झा से बात की। उन्होंने कहा  कि फर्जी डीड के आधार पर दाखिल-खारिज करना न सिर्फ भू-राजस्व कानून का घोर उल्लंघन है, बल्कि यह संगठित भ्रष्टाचार का संकेत भी देता है। अंचल कार्यालय ने कैसे 25 डिसमिल की जमीन के लिए 37 डिसमिल की रसीद जारी कर दी? यह जांच का विषय है। प्रशासन को तत्काल इसकी उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसी घटनाएं रैयती भूमि मालिकों में असुरक्षा की भावना पैदा करती हैं और सरकार के प्रति विश्वास को कमजोर करती हैं।

कांके अंचल कार्यालय में ऐसी अनियमितताएं कोई नई बात नहीं हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि यहां पहले भी जमीन से जुड़े कई फर्जीवाड़े के मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन कार्रवाई के अभाव में दोषी बेखौफ होकर अपना खेल जारी रखते हैं।

एक स्थानीय निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अंचल कार्यालय में बिना घूस के कोई काम नहीं होता। फर्जी दस्तावेज बनाना यहां आम है। अगर ऊपर से दबाव न हो, तो ऐसे मामले दबा दिए जाते हैं। यह स्थिति न केवल कांके क्षेत्र में बल्कि पूरे रांची जिले में भूमि विवादों को बढ़ावा दे रही है, जहां हजारों रैयत अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इस संबंध में जब कांके अंचल के वर्तमान अंचलाधिकारी अमित भगत से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होंने मोबाइल पर कोई बात करने से इन्कार कर दिया। उनका कहना था कि “मैं फोन पर इस बारे में नहीं बोलता। व्यक्तिगत रूप से आकर मिलिए।” यह जवाब और अधिक संदेह पैदा करता है कि आखिर क्यों अधिकारी मामले पर खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं? क्या यह चुप्पी किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है?

पीड़ित आशा कुमारी अब इस मामले को उच्च स्तर पर ले जाने की तैयारी में हैं। उन्होंने बताया कि वे झारखंड सरकार के लोकायुक्त और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से शिकायत करेंगी। साथ ही उन्होंने अन्य पीड़ितों से अपील की है कि वे भी अपनी आवाज उठाएं, ताकि ऐसे फर्जीवाड़ों पर लगाम लग सके। यह मामला अब सिर्फ एक महिला की लड़ाई नहीं रहा, बल्कि पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर रहा है।

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