Home धरोहर डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में बड़ा घोटाला, आवंटन का...

डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में बड़ा घोटाला, आवंटन का 6 गुना अग्रिम भुगतान!

Major scam in Dr. Ram Dayal Munda Tribal Welfare Research Institute, advance payment 6 times the allocation!

रांची दर्पण डेस्क। झारखंड की राजधानी रांची के मोरहाबादी इलाके में स्थित प्रतिष्ठित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान (Tribal Welfare Research Institute) में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं का सनसनीखेज खुलासा हुआ है।

सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) 2005 के तहत प्राप्त दस्तावेजों से पता चला है कि संस्थान ने दो महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर आवंटित राशि से करीब छह गुना अधिक धनराशि का अग्रिम भुगतान कर दिया है, जबकि ये प्रोजेक्ट अब तक पूरे नहीं हो सके हैं।

यह मामला आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और शोध से जुड़े फंड्स के दुरुपयोग की ओर इशारा कर रहा है, जो राज्य सरकार की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है।

संस्थान के जन सूचना पदाधिकारी सह सहायक निदेशक द्वारा 8 सितंबर को उपलब्ध कराई गई RTI जानकारी के अनुसार वर्ष 2023-24 में शुरू किए गए दो प्रोजेक्ट्स में भारी गड़बड़ी सामने आई है।

इन प्रोजेक्ट्स का उद्देश्य जनजातीय धार्मिक स्थलों और मुंडा समुदाय की सांस्कृतिक विरासत का दस्तावेजीकरण करना था, लेकिन फंड्स के वितरण में नियमों की अनदेखी की गई।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि सुनियोजित घोटाले का हिस्सा हो सकता है, जो आदिवासी कल्याण के नाम पर हो रहे खेल को उजागर करता है।

RTI दस्तावेजों के मुताबिक ‘वीडियो डॉक्यूमेंटेशन ऑफ ट्राइबल रिलीजियस साइट्स’ नामक इस प्रोजेक्ट को 21 सितंबर 2023 को लोहरदगा निवासी श्री निरंजन कुमार कुजूर को सौंपा गया था। प्रोजेक्ट के लिए कुल 7.50 लाख रुपये (साढ़े सात लाख) की राशि आवंटित की गई थी।

लेकिन हैरत की बात यह है कि संस्थान ने आवंटन राशि से कई गुना अधिक पैसा अग्रिम रूप से जारी कर दिया। पहली किस्त के रूप में 20.25 लाख रुपये (बीस लाख पच्चीस हजार) और दूसरी किस्त में भी इतनी ही राशि जारी की गई, यानी कुल 40.50 लाख रुपये (चालीस लाख पचास हजार) का भुगतान हो चुका है।

प्रोजेक्ट का अनुबंध 21 सितंबर 2023 को किया गया था और इसे वर्ष 2025-26 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन RTI से पता चलता है कि अब तक यह प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है, और कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

दस्तावेजों में यह भी उल्लेख है कि तीसरी किस्त प्रोजेक्ट पूरा होने और विशेषज्ञों की मंजूरी के बाद जारी की जाएगी, लेकिन पहले ही इतनी बड़ी राशि का भुगतान कैसे हो गया, यह सवाल संस्थान की कार्यप्रणाली पर गंभीर संदेह पैदा कर रहा है।

इसी तरह ‘ऑडियो वीडियो डॉक्यूमेंटेशन ऑफ मुंडाज इन छोटानागपुर’ नामक प्रोजेक्ट को भी 21 सितंबर 2023 को रांची स्थित ब्लू ग्रोभ मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के श्री दीपक बारा को आवंटित किया गया।

यहां भी कुल आवंटन राशि 7.50 लाख रुपये थी, लेकिन पहली और दूसरी किस्त में 20.25 लाख रुपये प्रत्येक जारी कर कुल 40.50 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया। यह प्रोजेक्ट भी अब तक अधूरा है और अनुबंध की शर्तों के मुताबिक तीसरी किस्त विशेषज्ञ अप्रूवल के बाद दी जानी है।

दोनों प्रोजेक्ट्स में कुल मिलाकर 81 लाख रुपये से अधिक का अग्रिम भुगतान किया जा चुका है, जबकि आवंटित राशि सिर्फ 15 लाख रुपये थी। यह राशि आवंटन से करीब 5.4 गुना अधिक है, जिसे RTI में ‘6 गुणी अधिक’ के रूप में वर्णित किया गया है।

सवाल यह उठता है कि बिना प्रगति रिपोर्ट और पूर्णता के इतनी बड़ी राशि कैसे जारी की गई? क्या यह फंड्स के दुरुपयोग का मामला है, या प्रशासनिक लापरवाही?

बता दें कि डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान झारखंड राज्य के आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए एक प्रमुख सरकारी संस्था है। यह राज्य सरकार के कल्याण विभाग के अधीन कार्यरत है और आदिवासी संस्कृति, भाषा, परंपराओं, कृषि, स्वास्थ्य तथा सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़े मुद्दों पर शोध करती है।

संस्थान की स्थापना मूल रूप से ‘जनजातीय शोध संस्थान’ के रूप में हुई थी, लेकिन बाद में इसे प्रसिद्ध आदिवासी विद्वान पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा (1939-2001) के नाम पर नामित किया गया। डॉ. मुंडा झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने ‘जे नाची से बांची’ (नृत्य से जीवन) जैसे सिद्धांतों से आदिवासी पहचान को मजबूत किया।

संस्थान की आधिकारिक वेबसाइट www.trijharkhand.in पर इसके कार्यों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। यह संस्थान आदिवासी समुदायों के संरक्षण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन हालिया RTI खुलासे से इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय आदिवासी संगठनों ने इस मामले की जांच की मांग की है, क्योंकि ऐसे प्रोजेक्ट्स सीधे उनकी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े हैं।

रांची के सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकारों के पैरोकार राजेश मुंडा  ने रांची दर्पण से बातचीत में कहा कि यह सिर्फ पैसे की बर्बादी नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति के साथ खिलवाड़ है। प्रोजेक्ट्स जो सालों से लंबित हैं, उन पर इतना पैसा बहाना संदिग्ध है। सरकार को तुरंत CBI जांच करानी चाहिए।

संस्थान के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई आधिकारिक बयान नहीं मिल सका। RTI से मिली जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रोजेक्ट्स की मॉनिटरिंग में कमी रही है या मिलिभगत रही है, जिससे फंड्स का दुरुपयोग संभव हो रहा है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version