
रांची, 22 अक्टूबर 2025 (रांची दर्पण संवाददाता)। झारखंड में प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं में अधिकारियों की भारी कमी के बावजूद सरकार ने कई अफसरों को बिना काम के बैठाकर रखा है। यह स्थिति तब है, जब राज्य में पहले से ही झारखंड प्रशासनिक सेवा (झाप्रसे) के करीब 500 पद रिक्त हैं, जिसके कारण विभिन्न विभागों में कामकाज प्रभावित हो रहा है। प्रभार के भरोसे प्रशासनिक कार्य चलाए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर कई अफसरों को महीनों से पोस्टिंग नहीं दी गई है और वे केवल उपस्थिति दर्ज कर वेतन ले रहे हैं।
जानकारी के अनुसार झारखंड प्रशासनिक सेवा के लगभग 40 अफसरों को पिछले तीन-चार महीनों से कोई पोस्टिंग नहीं दी गई है। ये अफसर विभिन्न विभागों, जैसे कार्मिक विभाग, राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, परिवहन विभाग और आपूर्ति विभाग में योगदान दे चुके हैं। लेकिन इनका काम केवल अपने-अपने विभाग में जाकर उपस्थिति दर्ज करना और फिर चले जाना है।
प्रावधान के तहत, जिस विभाग में अफसरों ने योगदान दिया है, उसी विभाग से उन्हें वेतन मिल रहा है। लेकिन इसके बदले उनसे कोई काम नहीं लिया जा रहा। बेसिक ग्रेड से लेकर जूनियर सलेक्शन ग्रेड और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) रैंक के अफसरों को भी बिना कार्य के बैठाया गया है।
29 जुलाई को कार्मिक विभाग ने झाप्रसे के कई अफसरों की सेवाएँ विभिन्न विभागों में आवंटित की थीं। इनमें से 14 अफसरों की सेवा ग्रामीण विकास विभाग को दी गई थी, लेकिन उनकी पोस्टिंग अब तक नहीं हो सकी।
इसके अलावा तीन महीने पहले कई जिलों में डिप्टी डेवलपमेंट कमिश्नर (डीडीसी) के पदों पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अफसरों की नियुक्ति की गई। इस दौरान झाप्रसे के कई डीडीसी और जिला परिवहन अधिकारी (डीटीओ) हटाए गए, लेकिन उनकी नई पोस्टिंग नहीं की गई।
प्रशासनिक अफसरों के साथ-साथ पुलिस विभाग में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। सातवीं से दसवीं झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) परीक्षा पास कर डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) रैंक हासिल करने वाले ट्रेनी डीएसपी ने जून 2023 में अपनी सभी प्रशिक्षण प्रक्रियाएँ पूरी कर ली थीं। लेकिन दो साल बाद भी उनकी पोस्टिंग नहीं हुई है।
इसी तरह 1994 बैच के 64 इंस्पेक्टरों को प्रोन्नति के बाद डीएसपी बनाया गया, लेकिन उनकी भी पोस्टिंग अब तक नहीं हुई। हैरानी की बात यह है कि कुछ प्रोन्नत डीएसपी अभी भी थानेदार के रूप में काम कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए रांची के बरियातू थाना प्रभारी मनोज कुमार डीएसपी रैंक में प्रोन्नत हो चुके हैं, लेकिन अभी भी थानेदारी कर रहे हैं। प्रोन्नति के बावजूद इन अफसरों को डीएसपी के रूप में पदस्थापन नहीं मिलने से उन्हें प्रोन्नति का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
झारखंड में प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं में पहले से ही अफसरों की भारी कमी है। स्वीकृत पदों की तुलना में झाप्रसे के करीब 500 अफसर कम हैं। इस कमी के कारण कई जगह ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) और सर्कल ऑफिसर (सीओ) के पद रिक्त हैं।
फिलहाल प्रदेश में जहां बीडीओ नहीं हैं, वहाँ सीओ को प्रभार दिया गया है और जहां सीओ नहीं हैं, वहाँ बीडीओ को अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस स्थिति में 40 से अधिक प्रशासनिक अफसरों और 39 डीएसपी को बिना काम के बैठाकर रखना सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।
एक ओर जहाँ नक्सल अभियान और विधि-व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए डायरेक्ट डीएसपी को तैनात किया जा रहा है, वहीं प्रोन्नत डीएसपी और प्रशासनिक अफसरों की उपेक्षा समझ से परे है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन अफसरों की पोस्टिंग समय पर कर दी जाए, तो प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी और रिक्त पदों की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी।
राज्य सरकार को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करने की जरूरत है, ताकि इन अफसरों की क्षमता का उपयोग हो सके और प्रशासनिक कार्यों में सुधार हो। अन्यथा बिना काम के वेतन देने की यह प्रथा न केवल सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग है, बल्कि जनता के प्रति जवाबदेही की कमी को भी दर्शाती है।







