
यह घटनाक्रम न केवल अभ्यर्थियों के धैर्य की परीक्षा ले रहा है, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है। क्या यह महज एक प्रशासनिक चूक है या फिर गहरी साजिश का इशारा? आइए, इस पूरी कहानी को बारीकी से समझते हैं। जहां एक तरफ युवा उम्मीदों के साथ लड़े जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकारी तर्कों की दीवारें खड़ी हो रही हैं…
रांची दर्पण डेस्क। कभी हजारों युवाओं के सपनों का केंद्र बिंदु झारखंड की शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया आज एक उलझे हुए रहस्यमयी कांड में बदल चुकी है। 2016 की स्नातक प्रशिक्षित शिक्षक संयोगिता परीक्षा के रिक्त पदों पर नियुक्ति का मामला, जो पहले ही अदालती जंगों से घिरा हुआ था, अब एक नया ‘ट्विस्ट’ ले चुका है।
कोर्ट के आदेश पर गठित जांच आयोग के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस एसएन पाठक ने जांच की जिम्मेदारी से साफ-साफ इनकार कर दिया है। 14 सितंबर को हाईकोर्ट को भेजे गए पत्र में उन्होंने अपनी असमर्थता जताते हुए किसी अन्य व्यक्ति से इसकी जांच कराने का आग्रह किया है।
उधर राज्य सरकार ने भी हार मानने की बजाय मोर्चा खोल दिया है। 2200 पन्नों की मोटी अपील याचिका दायर कर कोर्ट के पूर्व आदेश को ही चुनौती दे दी है। इससे साफ है कि सरकार मेरिट लिस्ट में किसी भी तरह के ‘सुधार’ के मूड में नहीं है और 2034 रिक्त पदों पर नियुक्तियां अब और लंबी प्रतीक्षा का शिकार हो सकती हैं।
यह घटनाक्रम न केवल अभ्यर्थियों के धैर्य की परीक्षा ले रहा है, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है। क्या यह महज एक प्रशासनिक चूक है या फिर गहरी साजिश का इशारा? आइए, इस पूरी कहानी को बारीकी से समझते हैं। जहां एक तरफ युवा उम्मीदों के साथ लड़े जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकारी तर्कों की दीवारें खड़ी हो रही हैं।
सब कुछ 2016 से शुरू होता है, जब झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (जेएसएससी) ने हाईस्कूल शिक्षक के 17,786 पदों पर भर्ती प्रक्रिया की। लाखों अभ्यर्थियों ने पसीना बहाया, परीक्षा दी और सपनों के पीछे दौड़े। जेएसएससी ने 26 विषयों के लिए स्टेट मेरिट लिस्ट और कट-ऑफ जारी की, जिसमें जिलास्तरीय और राज्यस्तरीय मेरिट के आधार पर नियुक्तियां की गईं।
लेकिन यहीं से घमासान मच गया। कई ऐसे अभ्यर्थी थे, जिनके अंक कट-ऑफ से ऊपर थे। फिर भी उनकी नियुक्ति नहीं हुई। क्यों? क्या गड़बड़ी? ये सवाल हवा में तैरने लगे। निराश अभ्यर्थियों ने झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कुल 258 याचिकाएं दायर हुईं, और कोर्ट ने इन्हें गंभीरता से लिया।
एक सितंबर 2025 को आया वह ऐतिहासिक फैसला: कोर्ट ने मेरिट लिस्ट में ‘विसंगतियां’ पाईं और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस एसएन पाठक की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित कर दिया। कोर्ट के आदेश स्पष्ट थे। आयोग को सभी पक्षों (अभ्यर्थी, सरकार, जेएसएससी) को सुनकर तीन महीने में रिपोर्ट तैयार करनी थी। उसके बाद राज्य सरकार को रिपोर्ट के आधार पर अगले छह सप्ताह में कार्रवाई करनी होती। साथ ही याचिकाकर्ताओं को आठ सप्ताह के अंदर जेएसएससी में आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
यह फैसला अभ्यर्थियों के लिए उम्मीद की किरण था। लेकिन अब जब जांच शुरू होने ही वाली थी, आयोग के चेयरमैन ने खुद को ‘असमर्थ’ बता दिया। जस्टिस पाठक का पत्र हाईकोर्ट के लिए एक झटका साबित हुआ। क्या स्वास्थ्य कारण या कोई अन्य दबाव? आयोग ने अभी तक कोई आधिकारिक वजह नहीं बताई है, जिससे अटकलें तेज हो गई हैं।
अभ्यर्थी संगठनों का गुस्सा सड़कों पर उतर आया है। उनकी दलील सीधी और सशक्त है कि मेरिट लिस्ट में सरकार ने जानबूझकर गड़बड़ी की। परीक्षा में कट-ऑफ से ज्यादा अंक लाने वाले योग्य उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मेरिट लिस्ट में ‘जिलावार कोटा’ और ‘राज्यस्तरीय वितरण’ के नाम पर मनमानी की गई। कई मामलों में कम अंकों वाले अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी गई, जबकि हाई स्कोरर्स को बाहर रखा गया। कोर्ट ने भी प्रथम दृष्टया इन दलीलों से संतुष्टि जताई थी। यही वजह थी कि आयोग गठित किया गया। लेकिन अब, जब सरकार ने अपील दायर कर दी तो अभ्यर्थी चिंतित हैं।
दूसरी तरफ राज्य सरकार का रवैया बिल्कुल अलग है। शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार मेरिट लिस्ट ‘पूरी तरह सही’ है और नियुक्तियां नियमों के अनुरूप हुईं। जेएसएससी के अधिवक्ता संजय पिपरेवाल ने रांची दर्पण को बताया कि सरकार अपना पक्ष मजबूती से कोर्ट में रखेगी। 2200 पन्नों की विस्तृत अपील याचिका दाखिल कर दी है, जिसमें सभी दस्तावेज और तर्क शामिल हैं। कोर्ट का एक सितंबर का आदेश जल्दबाजी में लिया गया लगता है। हम इसे चुनौती देंगे।
सरकार की दलीलें भी कम नाटकीय नहीं: मेरिट लिस्ट में कोई गड़बड़ी नहीं। नियुक्तियां बिल्कुल सही तरीके से की गईं। कोर्ट में अपील की गई है और हम उम्मीद करते हैं कि न्याय हमारे पक्ष में होगा। लेकिन आलोचक पूछते हैं कि अगर सब सही है तो इतनी मोटी अपील क्यों? क्या यह जांच से बचने की चाल है? सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि रिपोर्ट आने तक कोई नई नियुक्ति नहीं होगी, जिससे 2034 रिक्त पदों पर प्रक्रिया और लटक सकती है।
बता दें कि झारखंड हाईकोर्ट ने एक सितंबर के फैसले में साफ कहा था कि नियुक्ति प्रक्रिया में विसंगतियों से कोर्ट प्रथम दृष्टया संतुष्ट है। एक सदस्यीय आयोग जांच कर तीन महीने में सरकार को रिपोर्ट दे। फिर रिपोर्ट के आधार पर मंत्रिमंडल अगले छह सप्ताह में निर्णय ले। लेकिन चेयरमैन के इनकार और सरकार की अपील से यह समयसीमा फिसलती नजर आ रही है। अब सवाल यह है कि कोर्ट नया आयोग गठित करेगा या अपील पर सुनवाई करेगा? अभ्यर्थी संगठन धरना-प्रदर्शन की तैयारी में जुटे हैं, जबकि जेएसएससी चुप्पी साधे हुए है।
यह मामला न केवल 258 याचिकाकर्ताओं का है, बल्कि पूरे झारखंड के शिक्षा तंत्र का है। रिक्त पदों पर देरी से स्कूलों में शिक्षकों की कमी बढ़ेगी और छात्र प्रभावित होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द हल नहीं निकला तो यह भर्ती प्रक्रिया एक ‘एंडलेस सस्पेंस’ बन जाएगी। अभ्यर्थी क्या करें? सरकार का इंतजार या फिर सड़क पर उतरें?