
रांची दर्पण डेस्क। नाना प्रकार के भूमि घोटोलों के लिए मशहूर झारखंड की राजधानी रांची के कांके अंचल अंतर्गत मौजा नेवरी के एक भूमि मामले ने प्रशासनिक प्रक्रिया और समयबद्ध कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
खाता संख्या-17, आरएस प्लॉट संख्या-1335 स्थित कुल 25 डिसमिल रैयती भूमि वर्ष 2010 में वैध रूप से क्रय की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार दाखिल-खारिज पूर्ण हुआ, दखल-कब्जा स्थापित है और नियमित रूप से ऑनलाइन रसीद भी काटी जा रही है। वर्ष 2025-26 का लगान भी भुगतान किया जा चुका है।
हालांकि वर्ष 2022 में उसी भूमि पर एक अन्य व्यक्ति द्वारा कथित रूप से फर्जी डीड के आधार पर अंचल कार्यालय से दाखिल-खारिज करा लिया गया। परिणामस्वरूप एक ही प्लॉट पर दो अलग-अलग जमाबंदी और दो रसीदें जारी होने की स्थिति बन गई। वहीं कुल रकबा-25 डिलमिल से कागज पर 37 डिसमिल बना दी गई।
प्रभावित पक्ष द्वारा जून 2025 से लगातार जिला प्रशासन को शिकायतें दी गईं। जन शिकायत कोषांग ने 13 जून 2025 को पत्रांक 2847 के माध्यम से मामला अपर समाहर्ता को अग्रसारित किया। अपर समाहर्ता ने 19 जून 2025 को पत्रांक 3079 द्वारा कांके अंचल अधिकारी को नियमानुसार जांच व रिपोर्ट का निर्देश दिया।
इसके बावजूद अब तक न तो जांच रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है और न ही कथित फर्जी जमाबंदी पर कोई ठोस कार्रवाई सामने आई है।
राज्य में भूमि मामलों को लेकर समय-समय पर प्रशासन द्वारा त्वरित कार्रवाई और पारदर्शिता की बात कही जाती रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब दो जमाबंदी का तथ्य रिकॉर्ड पर है। जब वरिष्ठ अधिकारियों के लिखित निर्देश मौजूद हैं। तो जांच और निर्णय में देरी क्यों?
विशेषज्ञों के अनुसार झारखंड भूमि सुधार अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में तत्काल जांच और आवश्यक होने पर जमाबंदी रद्दीकरण की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, ताकि भविष्य में विवाद और न बढ़े।
प्रशासन की ओर से इस मामले में अब तक कोई स्पष्ट सार्वजनिक बयान नहीं आया है और न ही प्रभावित को लाख भाग-दौड़ करने के बाद कोई जबाव ही दिए गए। प्रभावित पक्ष का कहना है कि जब तक कार्रवाई नहीं होती, तब तक उनके अधिकार और कब्जा दोनों असुरक्षित बने रहेंगे।









