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सोशल मीडिया पर शिकायतों का ‘डाकघर’ है DC का जनता ‘दरबार’ !

रांची दर्पण डेस्क। झारखंड की राजधानी रांची में उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री का कार्यालय हर सोमवार को जनता दरबार लगाता है। यहां आम नागरिक अपनी समस्याएं लेकर पहुंचते हैं और उपायुक्त उन्हें सुनते हैं। सोशल मीडिया पर ये दरबार खूब सुर्खियां बटोरते हैं। फोटो, वीडियो और प्रशंसा के पोस्ट वायरल होते हैं।

लेकिन क्या ये दरबार वाकई जनता की समस्याओं का समाधान करते हैं? या सिर्फ एक दिखावा है, जहां शिकायतें सुन ली जाती हैं, लेकिन जिम्मेदार अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती?

रांची दर्पण की पड़ताल में सामने आया है कि ये दरबार अक्सर एक ‘डाकघर’ की तरह काम करते हैं, जहां शिकायतें सिर्फ आगे भेज दी जाती हैं और असली दोषियों पर कोई लगाम नहीं लगती। एक हालिया मामला इस पूरी व्यवस्था की पोल खोलता है, जहां फर्जी जमाबंदी जैसे गंभीर मुद्दे पर तीन महीने से शिकायत घूम रही है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

जनता दरबार का उद्देश्य सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना है। उपायुक्त हर सोमवार को अपने कार्यालय में नागरिकों से मिलते हैं। यहां जमीन से जुड़ी समस्याएं, जन वितरण प्रणाली की शिकायतें और अन्य प्रशासनिक मुद्दे उठाए जाते हैं।

उदाहरण के लिए अगर किसी की वर्षों से जमीन की रसीद नहीं कट रही तो दरबार में याचना करने पर रसीद कटवा दी जाती है। फर्जी जमाबंदी को रद्द करने का आदेश जारी हो जाता है। सुनने में ये सब बहुत प्रभावी लगता है, लेकिन सवाल ये है कि इन समस्याओं के पीछे छिपे अफसरों और कर्मचारियों की जवाबदेही कौन तय करता है? क्यों नहीं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होती?

रांची दर्पण से बातचीत में कई प्रभावित नागरिकों ने बताया कि दरबार में समस्या तो सुन ली जाती है, लेकिन उसके बाद शिकायतें सिर्फ फाइलों में घूमती रहती हैं।

एक चौंकाने वाला उदाहरण देखिए, जो प्रशासन की इस लापरवाही को उजागर करता है। 10 जून 2025 को रांची उपायुक्त के नाम एक शिकायत दर्ज की गई थी। यह शिकायत कांके अंचल में फर्जी जमाबंदी से जुड़ी थी। एक ऐसा मामला जहां अफसरों और कर्मचारियों की मिलीभगत से आम नागरिकों की जमीनें हड़पने की शाजिस की जा रही हैं।

उपायुक्त कार्यालय ने इसे 11 जून को पत्रांक-1271 के जरिए जिला जन शिकायत कोषांग को भेज दिया गया। जन शिकायत कोषांग के प्रभारी पदाधिकारी ने 13 जून को पत्रांक-2847 से इसे रांची जिला अपर समाहर्ता (राजस्व) को प्रेषित कर दिया। फिर अपर समाहर्ता ने 19 जून को पत्रांक-3079 से कांके अंचल अधिकारी को निर्देश दिया कि मामले की जांच करें और जन शिकायत कोषांग को रिपोर्ट भेजें। साथ ही उपायुक्त को सूचित करें।

लेकिन क्या हुआ? तीन महीने बीत चुके हैं। आज 09 सितंबर 2025 है और कांके अंचल अधिकारी अमित भगत ने अब तक कोई रिपोर्ट नहीं दी। आवेदक जब अंचल अधिकारी से बात की तो जवाब मिला कि ‘पर्सनली आकर मिलिए’।

अपर समाहर्ता कार्यालय के कर्मचारी कहते हैं कि जन शिकायत कोषांग से संपर्क कीजिए, हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं। और जन शिकायत कोषांग के कर्मी उल्टा कहते हैं कि ‘कांके अंचल अधिकारी से जाकर मिलिए और बोलिए कि रिपोर्ट दें’। यह एक अंतहीन चक्र है, जहां हर कोई जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल रहा है। फर्जी जमाबंदी जैसे गंभीर मामले में मिलीभगत की आशंका है, लेकिन कोई जांच नहीं हो रही। क्या ये प्रशासनिक तंत्र की नाकामी नहीं है?

रांची जिला प्रशासन की ‘अबुआ साथी’ पोर्टल भी इसी तरह नकारा साबित हो रहे हैं। पोर्टल पर शिकायतें अपडेट नहीं की जातीं। नागरिक कितनी भी शिकायतें करें, कोई जवाब नहीं मिलता।

एक शिकायतकर्ता ने बताया कि ये पोर्टल बस दिखावा हैं। शिकायत डालो तो महीनों तक कोई अपडेट नहीं। जनता दरबार में जाओ तो सुन लिया जाता है, लेकिन उसके बाद वही पुरानी कहानी फाइलें घूमती रहती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी व्यवस्था में जवाबदेही की कमी से भ्रष्टाचार बढ़ता है। अगर अफसरों पर कार्रवाई नहीं होगी तो समस्याएं जड़ से नहीं मिटेंगी।

ऐसे में सवाल उठना लाजमि है कि क्या जनता दरबार वाकई जनता के लिए है, या सिर्फ एक पीआर स्टंट? अगर प्रशासन को नागरिकों की समस्याओं का असली समाधान करना है, तो अफसरों की जवाबदेही तय करनी होगी। अन्यथा ये दरबार सिर्फ ‘डाकघर’ बने रहेंगे, जहां शिकायतें आती-जाती रहेंगी, लेकिन न्याय नहीं मिलेगा। क्या प्रशासन सुन रहा है?

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Ranchi Deputy Commissioner’s public court becomes the ‘post office’ for complaints on social media!

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