अन्य
    Monday, December 11, 2023
    अन्य

      ऐसे बीएड-एमएड पास अंशकालीन टीचरों से तो मनरेगा मजदूर ही बेहतर है सरकार

      राँची दर्पण डेस्क। सरकार का शिक्षा बजट कम नहीं होता है। लेकिन यदि आप झारखंड प्रांत के कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालयों में शिक्षण की रीढ़ बने अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाओं की वर्तमान दयनीय हालत की आंकलण करेंगे तो उनकी हालत किसी मनरेगा मजदूर से भी वद्दतर नजर आएगी।

      बता दें कि वर्ष 2005 में पूरे प्रदेश में गरीब एवं सुदूरवर्ती क्षेत्र के बंचित बालिकाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने के उदेश्य से कस्तूरबा गाँधी बालिका आवासीय विद्यालय की स्थापनी की गई। स्थापना के समय इस विद्यालय में कक्षा-6 से कक्षा-8 तक पढ़ाई होती थी।

      तब पठन-पाठन के लिए अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाओं की प्रक्रियागत नियुक्ति ली गई। तब उन्हें प्रति कार्य दिन 100 रुपए का मानदेय भुगतान किया जाता था।

      इसके बाद वर्ष-2010 में गरीब व ग्रामीण छात्राओं को उच्च शिक्षा मुहैया कराने के उद्येश्य से सभी कस्तूरबा विद्यालय  में कक्षा-9 से 12 तक का शिक्षण कार्य शुरु कर दिया गया।

      उसके बाद झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद, राँची के कार्यालय पत्रांक 09/80  दिनांकः 10.02.2016 के अनुसार वर्ग-6 से वर्ग-8 तक की अंशकालीन शिक्षकों का कार्य माह7 अधिकतम 25 दिनों के लिए प्रति दिन 200 रुपए की दर से मानदेय भुगतान की जाने लगी।

      वहीं वर्ग-9 से वर्ग-12 के लिए अंशकालिक शिक्षकों को अधिकतम 20 दिनों के लिए प्रति घंटी 150 रुपए की दर से 4 घंटी प्रति दिवस के आधार पर होने लगी। 2010 से इन अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाओं के मानदेय में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है।

      जहां तक कस्तूरबा के अंशकालीन शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया का सवाल है तो इनका चयन विद्यालय प्रबंधन समिति द्वारा योग्यता एवं साक्षात्कार के आधार पर की गई है। इन सभी अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाओं की योग्यता बीएड (विषयगत बीए ऑनर्स) और एमएड (विषयगत एमए) निर्धारित है।

      गौरतलब बात है कि प्रायः सभी कस्तूरबा विद्यालयों में अधिकृत की ओर से माह में निर्धारित कार्यावधि पूरा कराया हो। माह में शनिवार-रविवार,घोषित-अघोषित छुट्टी के दिन मानदेय काटकर भुगतान किया जाता रहा है। वार्षिक औसतन देखें तो प्रायः अंशकालीन शिक्षकों को 2000 से 3000 से अधिक मानदेय का भुगतान नहीं किया जाता रहा है।

      ऐसे में शिक्षा व्यवस्था पर सबाल उठना लाजमि है कि वैसे अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाएं, जिनमें प्रायः महिलाएं हैं, जिनकी योग्यता बीएड-एमएड हैं, उनके जीवन यापन में यह राशि कितनी कष्टदायक रही है, जिनके ही कंधे पर कस्तूरबा की पठन-पाठन का पूर्ण कार्यभार हो। इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।

      इधर कोरोना काल में राज्य के सभी कस्तूरबा आवासीय विद्यालय बंद है और कतिपय अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाएं ऑनलाइन गतिविधियों में उलझें भी हैं, इस कष्टकारी महामारी के दौरान किसी को एक फूटी कौड़ी भी मानदेय का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

      जबकि वे भूखमरी की भीषण दौर से गुजर रहे हैं। और इन्हें देखने वाला कोई नहीं है। प्रायः स्कूलों के वार्डन शिक्षिकाएं, जो खुद संविदा पर कार्यरत हैं, वे भी घृणाभाव प्रकट करने में उतारु हैं। शिक्षा परियोजना की गतिविधियां की जानकारी छुपा कर अलग खेल खेल रही हैं।

      इधर झामुमो नीत हेमंत सरकार बनने के बाद इन अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाओं में एक उम्मीद जगी है। क्योंकि पिछली भाजपा नीत रघुवर सरकार की शिक्षक विरोधी तेवर जगजाहिर रहे हैं।

      इधर सभी अंशकालीन शिक्षक-शिक्षिकाएं गोलबंद होकर अपनी पीड़ा स्थानीय विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर महामहिम राज्यपाल के समक्ष विभिन्न स्रोतों सें पहुंचा रहे हैं। अब देखना है कि शिक्षा और शिक्षकों के साथ न्याय की बात कर सत्तासीन हुई हेमंत सरकार यह अंधकार कब दूर कर पाती है?

      - Advertisment -

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      - Advertisment -
      संबंधित खबरें
      - Advertisment -
      - Advertisment -

      एक नजर

      - Advertisment -
      error: Content is protected !!