एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने लेह-लद्दाख में फंसे श्रमिकों को वापस लाने के लिए ऑपरेशन एयरलिफ्ट की कमान खुद संभाली। उन्होंने लेह से रांची तक एक-एक गतिविधि की मॉनिटरिंग की।
मजदूरों को दुर्गम स्थान से लेह एयरपोर्ट तक सुरक्षित सड़क मार्ग से लाने, शिविर में ठहरने,वहां स्वास्थ्य जांच कराने, सभी जगहों पर भोजन उपलब्ध कराने तक की व्यवस्था को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित कराया।
बिरसा मुंडा रांची एयरपोर्ट पर वह फ्लाइट लैंड करने से आधे घंटे पहले पहुंच गए। सीएम ने खुद मजदूरों का स्वागत किया। कई मजदूरों से संथाली भाषा में उनकी परेशानी के बारे में पूछा।
सीएम ने श्रमिकों को भरोसा दिलाया कि उनको उनके गांव में ही रोजगार मिलेगा। सीएम ने कहा कि मजदूरों को प्लेन से वापस लाने की मांग सबसे पहले उन्होंने की थी।
बता दें कि 10 मई को बटालिक-कारगिल सेक्टर में बीआरओ प्रोजेक्ट में काम करने वाले फंसे प्रवासी मजदूरों ने ट्विटर पर सीएम से वापसी के लिए मदद मांगी। सीएम ने लद्दाख संघ के स्थानीय प्रशासन से सहायता मांगी।
राज्य के कंट्रोल रूम से श्रमिकों का पूरा डेटा बेस तैयार कराया। बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन की मदद से लेह में श्रमिकों को भोजन उपलब्ध कराया।
वहीं 12 मई को मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने केंद्रीय गृह सचिव और फिर 20 मई को खुद सीएम हेमंत सोरेन ने अमित शाह को पत्र लिख कर लद्दाख, अंडमान और पूर्वोत्तर राज्यों में फंसे झारखंड के श्रमिकों की चार्टर प्लेन से वापसी की अनुमति मांगी। केंद्र से कोई उत्तर नहीं मिला।
केंद्र सरकार की ओर से देश में वाणिज्यिक हवाई संचालन की अनुमति दी गई। इसके बाद सीएम हेमंत सोरेन ने एक टीम बनाई और गोर्गोडोह गांव, बटालिक, लेह, कारगिल में फंसे दुमका के 60 श्रमिकों की सुरक्षित वापसी के लिए विमान यात्रा की सभी औपचारिकताएं पूरी करने का काम सौंपा।
इसके बाद 26 से 28 मई के बीच टीम ने सभी श्रमिकों के हर विवरणों को मैप किया, बीआरओ प्रोजेक्ट के संबंधित प्रमुख विजयक सौगत विश्वास, डिविजनल कमिश्नर- लद्दाख, स्थानीय एनजीओ, श्रमिकों और लेह से दिल्ली और दिल्ली से रांची वाणिज्यिक उड़ानों का संचालन करने वाली एयरलाइनों के साथ परिचालन समन्वय स्थापित किया गया।
लद्दाख से रांची पहुंचे संताल के 60 श्रमिकों को दो बसों से दुमका भेजा गया। दुमका में ही सभी की स्क्रीनिंग होगी। इसके बाद सभी को कोरंटाइन किया जाएगा। बसों में सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन कराया गया।
एक सीट पर दो लोगों को दूरी बना कर बैठाया गया। एयपोर्ट पर सभी को गुलाब का फूल और भोजन का पैकेट दिया गया। रांची के डीसी, एसएसपी, एसडीओ और अन्य पुलिस अधिकारी भी मौजद थे।
एयरपोर्ट से श्रमिकों को 10-10 के जत्थे में बाहर निकाला गया। बाहर निकलने के बाद एक जत्थे को बस में सवार करने के बाद दूसरे जत्थे को बाहर निकाला जा रहा था। सभी मजदूरों का विस्तृत ब्योरा लेने के बाद बस को रवाना किया गया।
एयरपोर्ट के अंदर भी श्रमिकों को सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने को कहा जा रहा था। बिरसा मुंडा एयरपोर्ट के अधिकारी और कर्मचारी भी इसके लिए तत्पर नजर आ रहे थे।
इस दौरान दुमका के शंकर देहरी ने कहा कि हम ऐसी जगह से आ रहे जहां हमारी सुनने वाला कोई नहीं था। धारा 370 के समय हमें बाहरी कह कर भी पीटा गया था।
कई जगह दौड़ाया गया। बाद में हमें पुलिस वालों ने एक मैदान में ले जाकर रख दिया। यहां भी कोई सुविधा नहीं मिल रही थी। भूखे- प्यासे रात काटनी पड़ी। घर के लोगों से बात नहीं हो रही थी।
कंपनी वाले से पैसा मांगते थे तो डांट कर कहते थे, पैसे देंगे तो भाग जाओगे। लॉकडाउन के बाद हालत और खराब हो गयी। जेब में पैसे नहीं थे। समय पर खाना नहीं मिलता था। जिंदा लौटने की उम्मीद छोड़ चुके थे। सरकार ने ख्याल किया। खाली जेब हवाई यात्रा की।