
रांची दर्पण डेस्क/मुकेश भारतीय। झारखंड की राजधानी रांची से 200 किलोमीटर दूर पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा सदर अस्पताल में एक ऐसी घटना ने पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया है, जो न सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल रही है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी तूफान ला रही है।
थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे सात मासूम बच्चों को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाने का यह मामला अब सिर्फ मेडिकल लापरवाही नहीं, बल्कि एक बड़ा सियासी ड्रामा बन चुका है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी को टैग करते हुए लिखा संदेश और मंत्री का जवाब कुछ घंटों के भीतर वायरल हो गया।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक विभागीय निर्देश था या बिहार विधानसभा चुनावों की हार से नाराज झामुमो की आंतरिक कलह का परिणाम? आइए इस घटना के हर पहलू को बारीकी से समझें।
घटना का काला अध्याय: मासूमों पर क्यों पड़ी लापरवाही की मार?
25 अक्टूबर 2025 को चाईबासा सदर अस्पताल पहुंचा एक सात साल का थैलेसीमिया पीड़ित बच्चा – यह कहानी का शुरुआती बिंदु था। डॉक्टरों ने उसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन की सलाह दी, लेकिन जो खून चढ़ाया गया, वह एचआईवी पॉजिटिव निकला।
प्रारंभिक जांच में यह बच्चा ही संक्रमित पाया गया, लेकिन जल्द ही खुलासा हुआ कि ऐसा ही संक्रमण छह अन्य थैलेसीमिया बच्चों में भी फैल चुका है। कुल सात बच्चे वो नन्हे फूल हैं, जिनकी जिंदगी अब अनिश्चितता की गिरफ्त में है।
बता दें कि यह मामला ब्लड बैंक की लचीलापन भरी व्यवस्था का नंगा चेहरा उजागर करता है। थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें मरीजों को हर 15-20 दिन में ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में जहां थैलेसीमिया के 10 हजार से अधिक केस हैं।
वहीं ब्लड बैंक सरकारी अस्पतालों की रीढ़ होने चाहिए, लेकिन यहां क्या हुआ? स्क्रीनिंग प्रक्रिया में चूक, स्टोरेज की कमी या जानबूझकर लापरवाही? स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार एचआईवी संक्रमण की पुष्टि में चार सप्ताह लग सकते हैं और ‘विंडो पीरियड’ के दौरान अगर संक्रमित खून चढ़ जाए तो परिणाम घातक होते हैं।
चाईबासा के इस ब्लड बैंक में क्या रक्त अधिकरण (ब्लड बैंक) से ही यह खून आया या बाहर से? यह सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन प्रारंभिक जांच में सिविल सर्जन सुशांतो कुमार मांझी, एचआईवी यूनिट के प्रभारी चिकित्सक और टेक्नीशियन की भूमिका संदिग्ध पाई गई।
सीएम का ट्वीट, मंत्री का जवाब: सोशल मीडिया पर सियासी संवाद या नौटंकी?
आज देर शाम झारखंड सूचना एवं जन संपर्क विभाग (आइआरपीडी) की प्रेस विज्ञप्ति ने आग में घी डाल दिया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक्स हैंडल @HemantSorenJMM पर स्वास्थ्य मंत्री @IrfanAnsariMLA को टैग करते हुए लिखा: ‘चाईबासा में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का संक्रमित होना अत्यंत पीड़ादायक है। राज्य में स्थित सभी ब्लड बैंक का ऑडिट कराकर पांच दिनों में रिपोर्ट सौंपने का काम करे स्वास्थ्य विभाग। स्वास्थ्य प्रक्रिया में लचर व्यवस्था किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी’।
यह संदेश न सिर्फ निर्देश था, बल्कि एक सार्वजनिक चेतावनी भी। सीएम ने सिविल सर्जन समेत संबंधित अधिकारियों को निलंबित करने का आदेश दिया, पीड़ित परिवारों को 2-2 लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की और इलाज का पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करने का भरोसा दिलाया।
लेकिन रोचक मोड़ तब आया, जब स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने तुरंत जवाब दिया। उन्होंने लिखा: ‘माननीय मुख्यमंत्री महोदय @HemantSorenJMM जी को अवगत कराना चाहता हूँ कि दो दिन पूर्व यह मामला मेरे संज्ञान में आया था, जिसके बाद मैंने तत्काल उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए।’ मंत्री ने निलंबन, जांच समिति गठन (एक सप्ताह में रिपोर्ट) और रक्त स्रोत की पड़ताल का जिक्र किया।
यह एक्सचेंज सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, लेकिन यूजर्स ने इसे ‘नौटंकी’ करार दिया। एक यूजर ने लिखा: ‘सीएम टैग करते हैं तो मंत्री जवाब देते हैं। लगता है चुनावी ड्रामा चल रहा है!’ ट्रोल्स की बाढ़ आ गई, जहां कुछ ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठाए, तो कुछ ने राजनीतिक कोण जोड़ा।
राजनीतिक घमासान: बिहार हार का बदला या स्वास्थ्य सुधार का बहाना?
यह मामला सिर्फ मेडिकल नहीं, बल्कि सियासी भी है। बिहार विधानसभा चुनावों में झामुमो को कांग्रेस-राजद गठबंधन से सिर्फ 6 सीटें भी नहीं मिलीं, जबकि अपेक्षा 20 से अधिक की थी। नाराजगी इतनी कि हेमंत सोरेन ने सहयोगी दलों से जुड़े मंत्रियों से दूरी बना ली।
कयास है कि कांग्रेस से जुड़े स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी भी उसकी चपेट में आए दिख रहे हैं। विपक्षी भाजपा ने इसे हथियार बनाया है। नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि ‘स्वास्थ्य मंत्री की लापरवाही से मासूमों की जिंदगी दांव पर लग गई। यह सरकार की विफलता है।’
झारखंड हाईकोर्ट ने भी संज्ञान लिया है और छह बच्चों की दोबारा जांच के आदेश दिए हैं। क्या यह ट्वीट आंतरिक कलह का संकेत है या वाकई सुधार की पहल? विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया का यह ‘पब्लिक शेमिंग’ तरीका अब नई राजनीति का हथियार बन रहा है। जहां निर्देश भी ट्वीट से और जवाब भी रीट्वीट से।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल: सुधार कब तक?
झारखंड में 150 से अधिक ब्लड बैंक हैं, लेकिन सिर्फ 30% भी सही मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं। थैलेसीमिया मरीजों के लिए ‘सेफ ब्लड’ सुनिश्चित करने के लिए नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (NACO) के दिशानिर्देश हैं, लेकिन अमल में कमी। यह घटना याद दिलाती है 2019 के रांची ब्लड बैंक घोटाले की, जहां नकली दवाओं से दर्जनों मौतें हुईं।
सीएम के ऑडिट आदेश से उम्मीद है कि पांच दिनों में रिपोर्ट आएगी, लेकिन सवाल वही कि कार्रवाई कागजों तक सीमित रहेगी या वास्तविक बदलाव लाएगी? पीड़ित परिवारों की चिंता जायज है। एक पीड़ित मां ने कहा, ‘हमारा बच्चा थैलेसीमिया से लड़ रहा था, अब एचआईवी की जंग भी जोड़ दी।’
मासूमों की पुकार, सियासत की बहस
चाईबासा का यह कांड झारखंड की स्वास्थ्य प्रणाली की जड़ों तक सवाल खड़े करता है। हेमंत सोरेन का सक्रिय रुख सराहनीय है, लेकिन मंत्री का ‘पहले से कार्रवाई’ दावा सवालों के घेरे में है। सोशल मीडिया ट्रोल्स तो जारी रहेंगे, लेकिन असली परीक्षा होगी जांच रिपोर्ट और सुधारों में। हालांकि स्वास्थ्य को सियासत से ऊपर रखी जानी चाहिए। क्या राज्य सरकार इसे टर्निंग पॉइंट बनाएगी? समय बताएगा।








